भारत एक विशाल देश है जहां अलग-अलग धर्मों में विश्वास करने वाले विभिन्न लोग रहते हैं। आप आमतौर पर देखते होंगे कि विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा अक्सर सार्वजानिक रास्तों पर भंडारे, लंगर या छबील का आयोजन किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी खुदसे सवाल किया है कि आखिर इन कार्यक्रमों के बाद बड़ी मात्रा में उत्पन्न होने वाले डिस्पोजेबल कचरे का क्या होता है?
गुरुग्राम निवासी समीरा सतीजा (45), अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर ऐसे कार्यक्रमों को होते देखती थी और यह देखकर परेशान भी होती थी कि हफ्तों तक उस स्थान पर जूठे डिस्पोजेबल कचरे को साफ़ नहीं किया जाता था। आमतौर पर ऐसे क्षेत्र को साफ करने के लिए कोई भी आगे नहीं आता है। और सच्चाई यह है कि बड़ी मात्रा में ये कचरा उत्पाद (या अपशिस्ट) जल निकासी और बागवानी जाल में फंस जाते हैं और कई बार इन्हे खाद्य पदार्थ समझकर, जानवर निगल जाते हैं।
डिस्पोजेबल कचरे की इस समस्या से समीरा को खासी परेशान थी। उन्होंने उस अनुसंधान के बारे में भी अध्ययन किया था जिसमे यह साबित किया गया था कि प्लास्टिक या स्टायरोफोम, हानिकारक और कैंसर कारक पदार्थों को भोजन में मिला देता है जब इसे डिस्पोजेबल प्लेटों में गरमागरम परोसा जाता है। कचरा डिस्पोजेबल प्रबंधन में काम करते हुए, वह अक्सर आयोजकों को डिस्पोजेबल प्लास्टिक वस्तुओं के दुष्प्रभावों के बारे में शिक्षित करती थीं लेकिन उनमें से कई इसके उपयोग के अपने स्वयं के कारणों को गिनाते थे। वास्तव में इन उत्पादों को खत्म करना तबतक आसान नहीं था जबतक इनके प्रतिस्थापन का प्रबंध न हो जाए।
यही वह विचार था जिसने समीरा को कुछ अलग सोचने पर मजबूर किया, उन्होंने ‘क्रॉकरी बैंक’ स्थापित करने का फैसला किया। इसके पीछे का विचार, आयोजकों को किराए पर या चार्ज किए बिना पुन: प्रयोज्य (reusable) क्रॉकरी उधार पर देना था, ताकि वे उनका उपयोग कर सकें और बर्तनों की सफाई के बाद उन्हें वापस कर सकें। वह जानती थी कि बर्तन खरीदने के लिए शायद कोई राजी नहीं होगा और किराए पर बर्तन बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं थे। उन्होंने निर्जला ऐकादाशी के समय ग्लासेस देने के साथ अपने कार्य को शुरू किया, जहां लोग छबील का आयोजन करते हैं और सड़क पर यात्रियों को मीठी लस्सी पेश करते हैं। उनका पहले कदम डिस्पोजेबल उत्पादों के उपयोग को खत्म करना नहीं था, बल्कि उसे कम करना था।
समीरा ने चायपानी के साथ एक साक्षात्कार में कहा, “मैंने उन्हें दो से तीन समूहों में बांटा और मुझे तब बेहद संतुष्टि हुई जब हम काफी बड़ी मात्रा में डिस्पोजेबल कचरे से बच सके।”
वह बताती हैं कि बर्तन उधार पर देने की प्रणाली पुराने समय के दौरान अस्तित्व में अवश्य थी, लेकिन जैसे जैसे हम आधुनिक युग की ओर बढ़ते गए, डिस्पोजेबल उत्पाद लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगे।
“मैंने उसी पुराने विचार को दोबारा अस्तित्व में लाने का काम किया। मैं होम कंपोस्टिंग को बढ़ावा देने और वेस्ट डिस्पोजल का प्रबंधन करने हेतु एक स्वयंसेवक के रूप में कार्यशील हूं। जब मैं इस विचार के साथ आगे आयी, तो मेरे साथी स्वयंसेवकों ने इस विचार की बहुत सराहना की,” वह कहती हैं।
अपने साथी स्वयंसेवकों में से एक, आरुषि ने अपने एक ऐसे दोस्त से बर्तनों की खरीदारी शुरू कर दी जो एक कारखाने का मालिक है। जैसे-जैसे इस विचार के प्रति जागरूकता बढ़ी, तो ज्यादा से ज्यादा लोग सामने आए और समीरा को उनसे ऑफर प्राप्त होने शुरू हो गए।
“मुझे हर किसी से उत्साहजनक प्रतिक्रिया प्राप्त हो रही है। मैंने कभी इसकी उम्मीद नहीं की थी। मैं विभिन्न लोगों एवं क्षेत्रों से प्राप्त प्रतिक्रिया से अभिभूत हूं,” वह कहती हैं।
समीरा का कहना है कि जहां तक बर्तनों की सफाई की बात है, तो यह बहुत आसान है, क्योंकि हर भंडारे, लंगर और यहां तक कि एक घरेलु पार्टी में भी, पानी आसानी से उपलब्ध होता है। समस्या तब आती है जब कार्यक्रम का आयोजन सड़क के किनारे या किसी सार्वजनिक स्थान पर होता है, जहां पानी की उपलब्धता एक समस्या है।
जब उनसे बर्तन उधार पर लेने की प्रक्रिया के बारे में पूछा गया, तो वह कहती हैं कि कार्यक्रम के आयोजक को केवल एक लिखित पत्र देना होगा जिसपर या तो उसकी जोखिम-भारित संपत्ति (Risk-Weighted Assets/आरडब्ल्यूए) के या वार्ड के काउंसिलर के हस्ताक्षर हों और जिसपर उस कार्यक्रम की तारीख और बर्तन की आवश्यकता का उल्लेख हो। यदि उपर्युक्त में से कुछ भी संभव नहीं है, तो समूह के किसी भी दो सदस्य को अपने आवासीय पते के साथ अपने आईडी प्रमाणों की दो प्रतियां (प्रत्येक को) देनी होगी।
समीरा, जिन्होंने अपनी जगह पर सिर्फ एक शाखा के साथ शुरुआत की थी, अब 9 शाखाओं (अकेले दिल्ली में 3) का सञ्चालन करती हैं। वह अपनी पहल के चलते लोगों से मिल रहे समर्थन के लिए खुदको आभारी महसूस करती है। वह कहती है, “उनमें से कुछ ने अपना पैसा लगाया और कई सोसाइटी अपना खुदका बैंक बनाने के लिए आगे आयी।” वह चाहती हैं कि हर समाज इस विचार को आगे लेकर जाए, क्योंकि यह उनके काम को आसान बना देगा और ईंधन की खपत के मामले में कम कार्बन फूटप्रिंट्स छोड़ेगा।
वास्तव में परिवर्तन तब शुरू होता है जब आप इसकी दिशा में एक छोटा कदम उठाते हैं। यह तभी होता है जब आप सफल होने का प्रयास करते हैं। चलिए पर्यावरण को बचाने के लिए हम सभी अपने स्तर से और अपनी क्षमता के अनुसार एक शुरआत करें और दैनिक जीवन में पर्यावरण-अनुकूल तरीकों को अपनाएं।
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