जीजिविषा की कोई उम्र नहीं होती, और हर जिजीविषा हमारे किसी न किसी सपने से जुडी अवश्य होती है। यह भी सत्य है कि एक बार हमारे भीतर कोई सपना जन्म ले लेता है तो फिर उस सपने को पूरा करने की जिजीविषा हमारे अंदर ताउम्र जवान रहती है। शिक्षा और ज्ञान की चाह, कई मायनों में व्यक्ति के भीतर जन्म लेने वाली एक जिजीविषा ही है। फिर उम्र चाहे कुछ भी हो, यह चाह लगातार बढ़ती ही जाती है। यह बात कहने में जितनी मामूली लगती है, वास्तव में यह बात उतनी ही गंभीर और आश्चर्य में डाल देने वाली है। भले ही इस बात को हम कई बार प्रत्यक्ष रूप से महसूस क्यों न कर चुके हों, लेकिन जब हमारे आसपास ऐसा कोई उदहारण नजर आता है तो बेहद ख़ुशी महसूस होती है। इसी जिजीविषा और उम्र के बंधन को तोड़ने का एक और उदहारण हमारे सामने है। लेकिन इसको जानने के लिए हम जाना होगा केरल, और मिलना होगा वहां की एक महिला से। केरल, भारत में सबसे ज्यादा साक्षरता दर रखने वाला राज्य। इसी प्रदेश की 96 वर्षीया महिला, कार्तियानी अम्मा ने प्रदेश की साक्षरता परीक्षा (Literacy Test) में 98 प्रतिशत अंक लाकर इस परीक्षा में टॉप किया है।
अम्मा, केरल के आलप्पुजा जिले में हरिपद की निवासी हैं। केरल सरकार द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षा, अक्षलक्षम परीक्षा (Aksharalaksham exam), जो कि चौथी कक्ष के समकक्ष एक परीक्षा है, का आयोजन आधिकारिक तौर पर उन लोगों को साक्षर घोषित करने के लिए किया जाता है जिन्होंने औपचारिक शिक्षा (formal education) हासिल नहीं की है। इस परीक्षा को, जिसमे परीक्षण, लेखन और गणित जैसे सब्जेक्ट शामिल थे, कुल 42, 933 उम्मीदवार ने दिया।
अम्मा ने इस परीक्षा में अद्भुद प्रदर्शन करते हुए टॉप किया और इसी कारण न केवल पूरे राज्ये में बल्कि पूरे देश में वो चर्चा का एक विषय बन गयी। उनकी उम्र के अनुसार उनका यह प्रदर्शन चौंकाने वाला था। केवल उनकी काबिलियत और जिजीविषा ही नहीं, उनके जीवन में अनुशासन की भूमिका की भी जितनी तारीफ की जाये, कम है।
शाकाहारी अम्मा, सुबह 4 बजे उठती हैं और उसके बाद नियमित रूप से शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने वाली कसरतें करती हैं। वह दावा करती है कि इतने वर्षों में वो आंखों की सर्जरी के अलावा, किसी भी बीमारी के चलते अस्पताल नहीं गई है। वो चाहती हैं कि वे जब 100 वर्ष की हो जाएँ तो वो दसवीं के समकक्ष परीक्षा को भी दें।
हालांकि, अम्मा के पिता एक शिक्षक थे, फिर भी उन्होंने और उनकी बहन ने 12 वर्ष की आयु के बाद से ही पढाई का दामन छोड़ दिया था और वे मंदिर में काम करने लगी थी। उन्हें तब नहीं पता था कि दशकों बाद उन्हें उस दामन को दुबारा थामने का मौका मिलेगा। आपको बता दें कि आखिर अम्मा में शिक्षा को लेकर इतनी जीजिविषा कैसे जाग गयी।
दरअसल अम्मा की 60 वर्षीय बेटी, अम्मीनी अम्मा ने साक्षरता मिशन के पाठ्यक्रम तहत कुछ साल पहले शैक्षिक पाठ्यक्रमों में कक्षा 10 के स्तर के बराबर की परीक्षा दी थी। और फिर अम्मा को भी अपनी बेटी को देखकर लगा कि उन्हें भी शिक्षा की ओर अपने कदम बढाने चाहिए। अम्मा इस परीक्षा में बैठने के लिए पिछले छह वर्षों से गणित और मलयालम सीख रही हैं। आपको यह जानकर भी ख़ुशी होगी कि इस परीक्षा को देने के बाद अम्मा ने मलयालम चैनल द्वारा दी गई पुस्तक के माध्यम से अंग्रेजी सीखने की शुरुआत कर दी थी। अम्मा का कहना है कि वह अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ बनाने की कोशिश कर रही हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या वो इस परीक्षा के नतीजों के प्रति आश्वस्त थी, वो कहती हैं,
हाँ बिलकुल। मुझे पूरा यकीन था कि मैं सबसे बेहतर प्रदर्शन करुँगी, पर मुझे थोडा अफ़सोस जरुर है कि मैं इस परीक्षा में शत-प्रतिशत अंक नहीं ला सकी (हँसते हुए)। मैं पढना जारी रखूंगी और अपने आत्मविश्वास को बरक़रार रखूंगी।
अम्मा की कहानी इतनी प्रेरणादायक रही कि उन्हें केरल के मुख्यमंत्री, पी. विजयन ने स्वयं एक समारोह में सम्मानित किया और उनकी शिक्षा की इच्छा को पूरा करने के लिए, राज्य के शिक्षा मंत्री सी. रविंद्रनाथ ने अम्मा के घर का दौरा करके, उन्हें एक लैपटॉप भी भेंट किया।
हम अम्मा के जुनून को सलाम करते हैं और उम्मीद करते हैं कि वो इसी प्रकार से हमे प्रेरित करती रहेंगी और हमारे समक्ष नयी मिसालें पेश करती रहेंगी। उनकी जितनी सराहना की जाए, कम है और ऐसे समय में जब भारत, एक पूर्णतया शिक्षित समाज बनने के लिए जूझता नजर आ रहा है, अम्मा जैसे लोग यह उम्मीद जगाते हैं कि आने वाला कल बेहद रोशन होगा।
अम्मा तुझे सलाम!!
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