शिक्षा, उस मरहम की तरह है जिससे सभी घाव भर जाया करते हैं। यह घाव भले ही किसी भी प्रकार का क्यों न है, इसका मर्ज केवल एक है, शिक्षा। आप किसी समाज को शिक्षित करते हुए, उस समाज में आमूल चूल परिवर्तन ला सकते हैं। यह जरूर है कि शिक्षित होने की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन ठोस शिक्षा हासिल करने का सबसे उपयुक्त समय हमारे और आपके बचपन से ही शुरू हो जाता है। यही शिक्षा आगे चलकर हमे इस समाज में कुछ कर गुजरने लायक बनाती है।
आज बाल दिवस के मौके पर हम एक ऐसी खबर से आपको रूबरू करवाएंगे जिसे पढ़कर आप ख़ुशी का अनुभव करेंगे। इस खबर की ख़ास बात यह है कि यह बच्चों से जुडी हुई है, वही बच्चे जो आज ही के दिन जन्मे, चाचा नेहरू (भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू) के प्रिय थे और जो हमारे देश का भविष्य हैं। दरअसल, बच्चों को शिक्षित करने की दिशा में एक अनूठा कदम उठाते हुए, गुजरात के सूरत में म्युनिसिपल कारपोरेशन ने प्रवासी मजदूर (migrant worker) के बच्चों के लिए विशेष तौर पर 120 स्कूल स्थापित किये हैं।
इन स्कूल की खास बात यह है कि ये न केवल प्रवासी मजदूरों की भाषायी सीमाओं को ध्यान में रखकर स्थापित किये गए हैं बल्कि यह शहर के समस्त प्रवासी मजदूरों को यह मौका दे रहे हैं कि उनके बच्चे उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा से वंचित न रहने पाए। यह अवश्य है कि मजदूर माँ बाप भले ही तमाम परिस्थितियों के कारण स्वयं एक मुकाम न हासिल कर पाए हों, लेकिन अब उनके बच्चे, शिक्षा के माध्यम से अपने माँ-बाप के दर्दों का घाव अवश्य भर पाएंगे। यह सब केवल एक सोच के चलते संभव हो सका और वो है कि परिस्थितियां चाहे जो हों, शिक्षा की पहुंच हर दरवाजे तक होनी चाहिए।
जैसा कि हमने बताया, इन स्कूलों में शिक्षा का माध्यम गुजराती न होकर, अन्य स्थानीय भाषाएं (जैसे हिंदी, ओडिआ, तेलुगु) हैं। और इसी के चलते प्रवासी मजदूरों को यह अवसर मिलेगा कि वे शहर में अपनी आजीविका चलाने के साथ-साथ अपने बच्चों को शिक्षित कर सकेंगे। इन स्कूलों के कारण, कई प्रवासी मजदूर सूरत में आकर बसने भी लगे हैं (मुख्यतः हिंदी भाषी राज्यों, ओडिशा और आंध्र प्रदेश से)। इन स्कूलों में लगभग 66,000 गैर-गुजराती भाषी बच्चे पढ़ रहे हैं। जो अपने आप में एक उपलब्धि है।
जहाँ 55 प्राथमिक स्तर के स्कूल, मराठी माध्यम से चल रहे हैं, वहीँ 28 उर्दू माध्यम के विद्यालय भी कार्यरत हैं। इसके अलावा 25 हिंदी और 9 अंग्रेजी माध्यम के स्कूल भी अस्तित्व में हैं।
म्युनिसिपल कारपोरेशन के एक अधिकारी ने कहा कि,
हम यह समझते हैं कि हमारे शहर में मौजूद प्रवासी मजदूरों के प्रति हमारी कुछ जिम्मेदारी अवश्य बनती है। अगर वो दूसरे प्रदेश से हमारे राज्य आकर काम कर रहे हैं, तो यह जरुरी है कि उन्हें यहाँ उनके बच्चों के लिए उचित शिक्षा भी मिले और इसी के चलते हमने गैर-गुजराती माध्यम के विद्यालय खासकर ऐसे बच्चों के लिए स्थापित करने का निर्णय लिया।
इन विद्यालयों में प्राइवेट स्कूल जैसी सुविधाएँ भी देने की कोशिश की गयी है, और काफी हद तक ऐसा करने में सफलता भी हासिल की गयी है। सूरत का यह म्युनिसिपल कारपोरेशन इस लिए भी प्रशंसा का पात्र है क्यूंकि संभवतः पूरे भारत में इस प्रकार की व्यवस्था अपने आप में अनूठी है और इससे सभी म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन को प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।
यह सूरत शहर और वहां के प्रवासी मजदूरों, दोनों के लिए अच्छी खबर है कि जहाँ मजदूरों को आजीविका उपलब्ध हो रही है, वहीँ उनके बच्चे अच्छी शिक्षा अपनी भाषा में ग्रहण कर रहे हैं, और वहीँ सूरत, देश भर के मजदूरों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहा है। हम सूरत म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के फैसले को सलाम करते हैं।
हम चायपानी के सभी पाठकों को बाल दिवस की शुभकामनायें देते हैं।
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