बचपन से ही, जब भी दीपावली का त्यौहार खत्म हो जाता था, उसके पीछे एक अजीब सा सूनापन रह जाता था। वही सोमवार से स्कूल जाना और वहीँ बोरिंग सी रूटीन लाइफ। दीपावली अपने पीछे बहुत सारा सूनापन पीछे छोड़ जाती थी। लेकिन धीरे-धीरे जब हम बड़े हुए, और खासकर पिछले 2-3 सालों से इस तरफ भी ध्यान जाने लगा कि दीपावली अपने पीछे बहुत ज्यादा सा प्रदूषण भी छोड़ जाती है। दिल्ली इस बात का सबसे उपयुक्त उदहारण है कि कैसे पर्यावरण में उत्सव के जोश के साथ प्रदूषण घुलता गया और अब यह हमारे लिए जहर बनता जा रहा है।
लेकिन क्या प्रदूषण के लिए हम किसी धर्म या धर्म विशेष त्यौहार को दोषी ठहरा सकते हैं? शायद नहीं, बिलकुल नहीं। क्यूंकि प्रदूषण का निर्माण केवल और केवल मानव जाती द्वारा ही किया जा सकता है और इसके लिए हम अपने कृत्यों के अलावा किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं। जहाँ एक ओर हम सरेआम खुदके लिए जहर का निर्माण करते हुए पर्यवरण को नुकसान पहुंचाते जाते हैं, वहीँ दूसरी ओर इसको बचाने के लिए तमाम प्रयास भी किये जा रहे हैं।

इन सभी प्रयासों में से कुछ प्रयास हमे चौंकाने वाले भी हैं, और आज हम इस लेख में ऐसे ही एक प्रयास के बारे में बात करेंगे। यह कहानी है थर्स्ट (Thirst) की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी 46 वर्षीया मीना गुली (Mina Guli) की, जिन्होंने हाल में वर्ष 2018 में टीसीएस न्यूयॉर्क शहर मैराथन का समापन किया। यह उनकी, 100 मैराथनों में से पहली मैराथन है, जिसे वह 100 दिनों में पूरा करने की योजना बना रही हैं। अपनी ‘100 दिनों में 100 मैराथन’ की पहल के माध्यम से जल संरक्षण के सम्बन्ध में जागरूकता बढ़ाने के अलावा, वह आशा करती हैं कि मैराथन के दौरान वे जल संकट और उसके समाधान के तरीके को बेहतर ढंग से समझने के लिए दुनिया भर में जल की कमी से जूझ रहे लोगों एवं उनके समुदायों से मिल सकेंगी।

सीमायें लांघने की आदत है पुरानी
उनकी इस मुहीम के अंतर्गत वो अपनी मैराथन के जरिये लोगों को जल और पर्यावरण को बचाने के लिए प्रोत्साहित करेंगी और हमारे जीवन में जल की अहमियत भी समझाएंगी। उनकी यह मुहिम पर्यावरण के संरक्षण के चलते तो उत्साहवर्धक है ही परन्तु इसके अलावा भी एक कारण है कि हमे मीना गुली की तारीफ करनी चाहिए। और वो कारण है, उनका स्वयं को शारीरिक असमर्थता की कैद से आजाद करना।

दरअसल एक बार तैराकी करने के दौरान उनकी पीठ में मोच आ गयी थी, जिसके बाद उनके डॉक्टर ने उन्हें कहा कि वो कभी दौड़ नहीं पाएंगी। लेकिन वो बताती हैं,
मैं इस दुर्घटना को अपनी नियति समझ सकती थी, और मैं अपने कंधों को झुका सकती थी और सोफे पर बैठ कर आराम से पिज्जा खाने का बहाना ढूंढ सकती था। लेकिन ऐसा करने के बजाए, मैंने इसे अपने लिए एक अवसर बनाने का फैसला किया – वह अवसर, जो मुझे अपनी सीमाओं को फिर से परिभाषित करने की अनुमति देगा। फिर मैंने तैरना शुरू कर दिया। एक दिन, मैंने इतनी तैराकी की फेफड़ों तक को उनकी सीमा भूल जाने पर मजबूर करलिया। इसके बाद मैंने तैराकी से बाइकिंग की ओर अपना रुख किया, और आखिरकार दौड़ने के लिए मैंने खुद को यह साबित करने के लिए प्रेरित किया कि मैं अपनी बाधाओं को पार कर सकती हूं।

वो स्वयं को एक धावक नहीं मानती हैं लेकिन वो यह समझती हैं कि उनके मैराथन अभियान से लोग प्रभावित होकर जल संरक्षण पर ध्यान देंगे।
पानी बचाने की प्रेरणा
जल संरक्षण के लिए उनका यह जुनून अतुल्य है। लेकिन आखिर यह जूनून उनमे आया कहां से? एक बार की बात है, वो दक्षिण अफ्रीका में ऑरेंज नदी के पास खड़ी थी और पास में खड़े एक पार्क रेंजर ने बातचीत के दौरान नदी के किनारे एक जगह की ओर इशारा किया और कहा, ‘यह नदी कभी उस निशान से 6 मीटर ऊपर हुआ करती थी। अब यह इतने निचे गिर गयी है।”

आगे बातचीत में उन्हें यह भी पता चला कि वहां रहने वाले वे सभी लोग, पानी पीने के लिए उस नदी पर निर्भर हैं। उनकी आजीविका के लिए वह पानी बेहद जरुरी है, और उन लोगों के पास उस नदी के अलावा कोई अर्थव्यवस्था मौजूद नहीं है, और न ही कोई समाज और जिंदगी है। वो स्वयं बताती हैं,
मैंने चारों ओर देखा और इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर करदिया, मैंने उसी वक़्त अपने पूरे जीवन को जल संरक्षण के लिए समर्पित करदेने का फैसला लिया। वह एक पल था जहां मैंने कहा, मैं तब तक काम करुँगी, जब तक मैं अपने मकसद में कामयाब नहीं हो जाती।

बेशक उन्होंने अपने हाथों में एक आसान चुनौती नहीं ली है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि दुनिया की आधी आबादी, वर्ष 2030 तक सीमित जल आपूर्ति वाले देशों में रह रही होगी। अकेले अमेरिका में, 100 मिलियन से अधिक अमेरिकियों को वर्ष में कम से कम एक महीने के लिए पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। यही कारण है कि मीना ने कोलगेट (Colgate) और इसके #EveryDropCounts के साथ मिलकर भी काम किया है।
इन देशों से होकर गुजरेंगी मीना
ऑस्ट्रेलिया मूल की मीना, और पूर्व में होन्ग-कोंग में वकील और निवेश बैंकर रह चुकी गुली ने अपने मैराथन के लिए जानबूझकर ऐसे स्थान चुने हैं जो जल संकट से जूझ रहे हैं। आसपास के स्थानों में मैराथन दौड़ना शायद उनके लिए बहुत आसान होता, लेकिन इसके बजाय उन्होंने अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली, उजबेकिस्तान और ऐरल सी, भारत, हांगकांग (8 दिसंबर), चीन, दुबई, जॉर्डन, इज़राइल, फिलिस्तीन, इथियोपिया, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, चिली, बोलीविया, पेरू, मेक्सिको और 11 फरवरी को अमेरिका में वापस आने की योजना बनाई है।

अगर गुली अपनी योजना में कामयाब हो जाती हैं, तो वह 100 दिनों में 2,620 मील दौड़ चुकी होंगी। यह पहली बार नहीं होगा जब वो शारीरिक रूप से चरम स्तर का प्रदर्शन करेंगी, वर्ष 2016 में भी, उन्होंने सात हफ्तों में सात महाद्वीपों के सात रेगिस्तान में 40 मैराथन दौड़े थे। वर्ष 2017 में भी उन्होंने 40 दिनों में 40 मैराथन पूरा किया था।

मीना गुली का दुनिया के लिए सन्देश
जल संरक्षण के लिए किये जा रहे उनके कार्य की चायपानी सराहना करता है। हम उन्हें शुभकामनायें देते हैं और उम्मीद करते हैं कि हम भी उनसे पर्यावरण के लिए किये जा रहे इस कार्य से कुछ सीखेंगे और तेज़ी से फ़ैल रहे प्रदूषण को मिटाने का प्रयास करेंगे। इस लेख के अंत में आइये मीना गुली द्वारा कही गयी एक महत्वपूर्ण बात को याद करते हैं,
मैंने बहुत से लोगों से बात की और जानना चाहा कि कुछ हासिल करने के लिए क्या किया जाता है? और मुझे एहसास हुआ कि कुछ भी हासिल करने के लिए – विशेष रूप से बड़ी चीजें हासिल करने के लिए – हमें 100 प्रतिशत प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है, और इसी विचार के साथ मैं भी ‘100 दिन-100 मैराथन’ अभियान के लिए पूरी तरह से तैयार हो सकी।
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