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पृथ्वी शॉ, वो युवा क्रिकेटर जिसने साबित किया कि उम्र, प्रतिभा के आड़े नहीं आती : पढ़िए उनके संघर्ष की दास्तान

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हम और आप, जीवन में तमाम तरह के सपने देखते हैं और यह उम्मीद करते हैं की हम उन सपनो को पूरा भी कर सकें। उस लक्ष्य के पीछे भागते हुए हम न जाने कितने प्रयत्न करते हैं क्यूंकि हम जानते हैं कि हमारा हर छोटा या बड़ा प्रयास, हमे हमारी मंजिल के करीब ले जाता है और इसीलिए कहते हैं कि हर कदम मायने रखता है (every step counts)।

जरा सोंचिये, कैसा हो अगर आप अपने सपने को पूरा करें और उस सपने के पहले पड़ाव पर ही आपको दुनिया से वाहवाही मिलने लगे क्यूंकि आपने उस पड़ाव पर अपने सामर्थ्य को साबित कर दिया है और यह दिखा दिया है कि आखिर क्यों आप उस सपने के लायक हैं।

यह कहानी है विरार, महाराष्ट्र के पृथ्वी शॉ की जिन्होंने 4 अक्टूबर 2018 को वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना पहला अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट मैच खेला, और क्या खूब खेला। इसी मैच में, उन्होंने टेस्ट में अपना पहला शतक भी जड़ दिया और इसी के साथ वे डेब्‍यू टेस्‍ट में शतक बनाने वाले भारत के सबसे कम उम्र के क्रिकेट खिलाड़ी बन गए (18 साल और 329 दिन)। शॉ ने 154 गेंदों में 19 चौकों की मदद से 134 रन की बेहतरीन पारी खेली।

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लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, हम किसी सफल व्यक्ति की सफलता का लोहा तो मान लेते हैं लेकिन अक्सर उसके पीछे के संघर्ष को सलाम करना भूल जाते हैं। लेकिन चायपानी के जरिये हम चाहते हैं कि आप पृथ्वी शॉ की सफलता के साथ साथ उनके संघर्ष को जाने, समझें और सराहें। क्यूंकि इस सराहना के वो एक जायज़ हक़दार हैं। पृथ्वी, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि अगर आप अपने सपने को लेकर गंभीर हैं तो कोई भी चुनौती गंभीर नहीं लगती, कोई भी अड़चन आपके राह का पहाड़ नहीं बनती।

पृथ्वी, जिनकी माँ का निधन तब हुआ जब वो महज़ 4 वर्ष के थे, अपने पिता द्वारा पाले गए हैं और मैच के बाद पृथ्वी शॉ ने खुद इस बात को स्वीकारा। उनके पिता ने अपने बेटे को अपने सपने का पीछा करने में मदद करने के लिए अपनी एक छोटी सी कपड़ों की दुकान तक को बेच दिया था।

“मेरे पिता ने मेरे लिए बहुत बलिदान किये हैं, मैंने अपना टेस्ट शतक अपने पिता को समर्पित करता हूँ. उनके समर्पण और त्याग के बिना मै वो हासिल नहीं सकता था जो मैंने अपने जीवन में किया”, पृथ्वी कहते हैं।

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पृथ्वी, अपने जीवन में मुकाम दर मुकाम हासिल करते गए और उनके ऊपर हिंदी की एक चर्चित कहावत एकदम सटीक बैठती है, ‘पूत के पाँव पालने में दिखते हैं’। मकरंद वायंगणकर, जिन्होंने पृथ्वी को उनके शुरूआती दिनों में कुछ समय के लिए कोच किया था, बताते हैं:

“मुझे वो समय याद है जब मैंने पहली बार पृथ्वी को नौ वर्षीय बच्चे के रूप में देखा था। उनका कद मुश्किल से चार फीट रहा होगा और वो किसी प्रकार क्रीज़ पर खड़े होकर खुद को संभाल रहे थे, लेकिन जब उन्होंने अपने बल्ले से गेंद को मारा, वह दृश्य अद्भुद था. मुझे उसी वक़्त पता चल गया था कि न केवल इस बच्चे के बल्ले का असर तीव्र है बल्कि इसकी प्रतिभा भी अपने आप में विलक्षण प्रकृति की है”।

यही नहीं, पृथ्वी की प्रतिभा का प्रभाव इतना था कि उन्हें 12 वर्ष की उम्र में ही, एसजी (प्रसिद्ध क्रिकेट उपकरण मैनफैक्चरर) से 36 लाख रुपये का पहला स्पॉन्सरशिप सौदा मिला गया था। इसके बाद उन्होंने कभी भी मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद उन्हें स्कालरशिप पर इंग्लैंड जाने का भी अवसर मिला, जहाँ उन्होंने क्लब और काउंटी क्रिकेट खेलते हुए अपनी प्रतिभा को जरुरी पैनापन दिया।

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प्रशांत शेट्टी, जिन्होंने एमआईजी क्रिकेट अकादमी (बांद्रा) में पृथ्वी को कोच किया था ,बताते हैं।
“वह हमारे पास तब आया था जब वह महज़ नौ वर्ष का था और जब वो 10 वर्ष का हुआ, तो हमारे मुख्य कोच किरण मोकाशी सर ने उसकी प्रतिभा को देखते यह फैसला किया कि पृथ्वी को सीनियर नेट में खेलना चाहिए। जब वह सीनियर नेट में बल्लेबाज़ी करने पंहुचा तो वो 18-20 वर्ष के लड़कों (गेंदबाज़ों) का सामना बेहद आसानी से कर रहा था। यहीं से हमे उसपर अटूट विश्वास हो गया कि उसे भारत की ओर से खेलने के लोए ज्यादा इंतज़ार नहीं करना होगा”।

8-9 साल से लगातार सुबह 4 बजे उठकर नेट्स पर जाना और मुंबई लोकल में खड़े होकर यात्रा करना (वो भी भारी क्रिकेट किट के साथ), उनके लिए आम बात हुआ करती थी। सचिन को अपना आदर्श मानने वाले पृथ्वी ने अभी हाल ही में अपने पिता को मुंबई के एक पॉश इलाके में इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन द्वारा दिए गए घर में शिफ्ट किया है। यह उनके पिता के लिए बेहद भावुक और अपने बेटे पर गर्व करने वाला क्षण था। वो क्रिकेट के बारे में ज्यादा नहीं जानते लेकिन वो अपने बेटे को चिंतामुक्त होकर खेलने के लिए अवश्य कहते हैं।

अपने पहले ही टेस्ट मैच में अपार सफलता हासिल करने वाले पृथ्वी ने इससे पहले भी तमाम मुकाम हासिल किये हैं। नवंबर 2016 में, पृथ्वी, भारत अंडर -19 टीम का हिस्सा थे जिसने श्रीलंका में युवा एशिया कप जीता था। दो महीने बाद, उन्होंने तमिलनाडु के खिलाफ सेमीफाइनल में रणजी ट्रॉफी के अपने सफर की शुरुआत की और दूसरी पारी में शतक बनाते हुए अपनी टीम को जीत थमा दी। 17 वर्ष की उम्र में, वो दिलीप ट्रॉफी में सबसे कम उम्र में शतक लगाने वाले खिलाड़ी बने।

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इसके अलावा वर्ष 2018 में, राहुल द्रविड़ के मार्गदर्शन में, उन्होंने न्यूजीलैंड में आयोजित हुए अंडर -19 विश्वकप में भारत का नेतृत्व करते हुए देश को यह बहुप्रतिष्ठित ख़िताब जिताया। इसके बाद वर्ष 2018 में उन्हें दिल्ली डेयरडेविल्स द्वारा 1.2 करोड़ के अनुबंध के तहत आईपीएल टीम में शामिल किया गया।

पृथ्वी शॉ, आपको हमारी तरफ से शुभकामनायें। ऐसे ही हम सबको प्रेरित करते रहें और कामयाबी के शिखर को चूमते रहें।

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Sparsh Upadhyay

एक विचाराधीन कैदी हूँ। कानून की पढ़ाई भी की है। जितना पढ़ता हूँ, कोशिश रहती है कि उतना ही लिखूं भी। सच्चाई, ईमानदारी और प्रेम को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत समझता हूँ।

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