केंद्रीय मंत्री और भाजपा के प्रमुख नेता, अनंत कुमार हेगड़े ने हाल ही में एक विवादित बयान दिया। उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में घोषणा की कि कोई भी हाथ जो एक हिंदू लड़की को छूता है, “मौजूद नहीं रहना चाहिए”। उनके इस बयान की न केवल देश को निंदा करनी चाहिए बल्कि हमे, हमारे समाज में औरतों की स्थिति के बारे में चिंता करने की आवश्यकता है।
हमारे देश के संविधान निर्माता इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि देश का संविधान ऐसा बनाया जाना चाहिए जहाँ किसी विशेष धर्म, संप्रदाय या लिंग के बीच असमानता की जगह न हो। इसी क्रम में हमारा पूरा संविधान समानता के मूल्यों को पिरोये हुए है। लेकिन जैसा की अक्सर होता है, हमारे देश में महिलाओं को या तो दोयम दर्जे का लिंग समझा जाता है या पुरुषों से कमतर आंका जाता है। इसके अलावा प्रायः ही महिलाओं को पुरुष की बपौती या संपत्ति समझा जाता है। हम सब इस बात को अपने आस-पास महसूस करते भी हैं।

केंद्रीय कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री और उत्तर कन्नडा निर्वाचन क्षेत्र के लिए संसद सदस्य, अनंत कुमार हेगड़े ने हाल ही में महिलाओं एवं गैर हिन्दू पुरुषों के लिए जो टिपण्णी की वह विवाद का विषय रही। इंडिया टुडे के अनुसार, उन्होंने मदुरापुर में हिंदू जागरण वेदिक द्वारा आयोजित एक समारोह में भड़काऊ बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि हिंदू महिला को छूने वाले हाथ को काट दिया जाना चाहिए।

अगर कोई हिंदू लड़की को छूता है तो उस हाथ का अस्तित्व नहीं होना चाहिए। ऐसे ही इतिहास लिखा जाता है। जब बात इतिहास बनाने की आती है तो आप वीरता देख सकते हैं, और जब बात इतिहास के अध्ययन की आती है है, तो कायरता सामने आती है। आप इतिहास के निर्माता बनना चाहते हैं या इतिहास के छात्र बनना चाहते हैं?
उन्होंने आगे कहा कि,
हमें अपने समाज की प्राथमिकताओं के बारे में पुनर्विचार करना चाहिए। हमें जाति के बारे में नहीं सोचना चाहिए। अगर किसी हिंदू लड़की को हाथ से छुआ जाता है, तो वह हाथ मौजूद नहीं होना चाहिए।

वो यहाँ गैर हिन्दू पुरुष द्वारा हिन्दू लड़की को छुए जाने की बात कर रहे थे। इसके साथ ही वह हिन्दू पुरुषों को यह समझा रहे थे कि अगर एक हिन्दू लड़की को कोई गैर हिन्दू पुरुष छूता है तो हिन्दू पुरुष को उस हाथ का अस्तित्व मिटा देना चाहिए। और इस अपराध को वो इतिहास बनाने की संज्ञा दे रहे थे।
डेक्कन क्रॉनिकल के मुताबिक, मंत्री जी ने कहा,
अगर दूसरे धर्म के लड़के हमारी हिंदू लड़कियों को छूते हैं, तो हिंदू लड़कों को उस हाथ को तोड़ना चाहिए और इतिहास रचने के लिए तैयार होना चाहिए।
हमे यकीन भले न आये, लेकिन याद रहे कि हम एक सेक्युलर देश में रह रहे हैं, जहाँ तमाम प्रकार की स्वतंत्रता हमारे संविधान में निहित है जिसमे कहीं भी किसी दूसरे धर्म के पति या पत्नी से शादी करने पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है।
क्या औरत है पुरुष की संपत्ति?
अनंत कुमार हेगड़े के इस बयान में एक पुरुष सत्तामक सोच भी झलकती है। और वह सोच, स्त्री को पुरुष की संपत्ति समझना है। अगर कोई हिन्दू हाथ किसी हिन्दू स्त्री को छुएगा तो दो बातें हो सकती हैं, या तो वो हाथ उस स्त्री की मर्जी से उस स्त्री को छू रहा होगा, या बिना उस स्त्री की मंजूरी के। अगर एक गैर हिन्दू पुरुष का हाथ (या दूसरी जाति के पुरुष का हाथ, या किसी भी पुरुष का हाथ) किसी हिन्दू स्त्री को (या किसी भी स्त्री को) उस स्त्री की मर्जी से छू रहा है तो इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
दिक्कत इसलिए नहीं होनी चाहिए क्यूंकि औरत, अपने आप में एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है, जिसके पास सोचने और तर्क करने की क्षमता है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की उसकी आजादी और फ्री विल (free will) के साथ हस्तक्षेप करने का किसी को अधिकार नहीं है।

हाँ, जब किसी स्त्री को उसकी मर्जी के बग़ैर छुआ जाता है, तो हमे दिक्कत हो सकती है। लेकिन ऐसी किसी भी घटना से निपटने के लिए हमारा कानून और पुलिस व्यवस्था मौजूद है, और इसके बाद न्यायालय इस मामले में फैसले करने के लिए उपलब्ध है। और कानून किसी भी व्यक्ति को अपराध के बदले अपराध करने की इजाजत नहीं देता है। अगर किसी पुरुष की पत्नी, बहन, माँ, बेटी या अन्य सम्बन्धी के साथ कोई छेड़छाड़ या अप्रिय घटना को अंजाम देता है तो उस पुरुष को यह अधिकार नहीं बनता की वो इस बात का बदला अपने स्तर से ले, क्यूंकि वह बदला अपने आप में एक अपराध हो जायेगा।

हालाँकि हेगड़े का बयान किसी और ओर भी संकेत दे रहा है और वह है स्त्री पर पुरुष की अधिकारिता। और यह मुद्दा केवल एक बार किसी स्त्री को किसी पुरुष द्वारा छुए जाने से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह मसला एक पुरुष सत्तात्मक सोच का है, जो वक़्त के साथ दकियानूसी हो जानी चाहिए थी लेकिन अफ़सोस।

अब आते हैं औरत को पुरुष की संपत्ति समझे जाने की सोच पर। सुप्रीम कोर्ट ने जोसेफ़ शाइन बनाम भारत संघ 2017 के मामले में साफ़ किया है कि,
स्त्री, पुरुष (उसके पति) की संपत्ति नहीं हो सकती है और न ही वो उस पर अपनी स्वायत्ता स्थापित कर सकता है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अडल्ट्री के अपराध को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इसके पहले कई मामलों में सुप्रीम के निर्णयों का अभिप्राय यह होता था कि पत्नी, पति की संपत्ति है लेकिन इस मामले में इस अवधारणा को पूरी तरह से बदल दिया गया। इस फैसले के सन्दर्भ में यह साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि अब स्त्री किसी की भी संपत्ति नहीं हो सकती है। स्त्री अपने आप में एक स्वतंत्र सोच है और उसे काबू में किया जाने वाली प्रकृति का नहीं समझा जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री ने अपने एक बयान में औरतों को काबू में करके रखने को जरुरी माना था। उनका कहना था,
जैसे बेलगाम ऊर्जा विनाशकारी हो सकती है और दुष्परिणाम ला सकती है, वैसे ही यदि महिलाओं की भावना को नियंत्रित नहीं किया जाता है तो यह खतरनाक साबित हो सकती है।
वह यह भी कहते हैं कि,
बचपन से ही महिलाओं की सुरक्षा की जाती है, पहले उनके पिता द्वारा, फिर उनके पति द्वारा युवावस्था में और अंत में उनके बेटे द्वारा उनके बुढ़ापे में। इसलिए यहां तक कि शास्त्र भी यह निर्देश देता है कि उसे हर हाल में सुरक्षित रखने की जरूरत है। इसलिए, इसका मतलब है कि एक महिला अकेले रहने में सक्षम नहीं है।

ध्यान रहे कि औरत, एक बच्चा पैदा करने में सक्षम है। किसी देश/प्रदेश की प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री/राष्ट्रपति/राज्यपाल बनने में सक्षम है। देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में टॉप करने में सक्षम है। खेलकूद में भारत का मान बढ़ाने में सक्षम है, वैज्ञानिक/प्रोफेसर/बैंकर और न जाने क्या-क्या बन सकने में सक्षम है, लेकिन वो अकेले रहने में सक्षम नहीं और हाँ अगर उसे कोई छुए तो उसे रक्षा देते हुए हाथ छुए जाने वाले के हाथ काट देने चाहिए। है न घटिया लॉजिक?

योगी आदित्यनाथ के बयान को पढ़ कर हम सब को स्तब्ध रह जाना चाहिए और इस सत्य को आत्मसात करने के लिए कुछ समय लेना चाहिए कि ऐसा व्यक्ति भारत के सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश का मुख्यमंत्री है। अगर शास्त्रों में ऐसा कुछ भी लिखा है तो ऐसे शास्त्रों को अतीत के कूड़ेदान में दफना देना चाहिए और एक आजाद मुल्क में आजाद औरतों की गाथा गढ़ी जानी चाहिए क्यूंकि वर्तमान वक़्त, हमेशा वर्तमान में रहना चाहिए, अतीत में नहीं।

औरत को है अपना जीवनसाथी चुनने की इजाजत?
अब आते हैं औरत को अपने मर्जी से अपने जीवनसाथी को चुनने की आजादी पर। हेगड़े जी के बयान में जिस हाथ का उल्लेख हुआ है अगर वो उस स्त्री की मर्जी से उसे छू रहा हो तो? क्या फिर भी उस हाथ को काट देना चाहिए? नहीं, बिलकुल नहीं, हरगिज़ नहीं।
दरअसल, चाहे वह परिवार हो, समाज हो, ठगों का गिरोह हो या राजनीतिक दल हों, भारत में महिलाओं की आजादी के लिए कई तरह के खतरे हैं। उपरोक्त सूची में, पुलिस और न्यायपालिका को भी जोड़ा जा सकता है। अक्सर ही जब किसी स्त्री ने अपनी पसंद के मुताबिक कोई कार्य किया है, या अपनी मर्जी से किसी व्यक्ति का चुनाव किया है तो कानून के शासन की रक्षा करने वाली एजेंसियों ने निष्क्रिय पर्यवेक्षकों के रूप में काम किया है और उस स्त्री को हिंसा के कई रूपों का सामना करना पड़ा है। जैसा कि हादिया और अन्य के मामले में हुआ है।

हादिया मामला हो या कोई और, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर एक व्यक्ति को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है। यह उसके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में शामिल है। किसी से किसी के प्रेम सम्बन्ध पर और उसकी सहमति पर सवाल उठाना अनुचित है। दो सहमति देने वाले वयस्कों के मामले में, वैवाहिक स्थिति को लेकर किसी को भी पूछताछ के लिए कठघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता है।
एक व्यस्क महिला अपनी मर्जी से किसी भी व्यस्क पुरुष के साथ वैवाहिक सूत्र में बांध सकती हैं। हम, आप और ये समाज उसमे हस्तक्षेप रखने का अधिकार नहीं रखते हैं। यह उस स्त्री की स्वतंत्रता है कि वो अपने जीवनसाथी के रूप में किसका चुनाव करती है। शादी जैसे निर्णय लेने का एक स्त्री को हक है और यह हक उससे हम और आप नहीं छीन सकते हैं।

अगर किसी महिला के किसी पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध भी हैं तो उस स्त्री की मानसिक क्षमता पर सवाल उठाना भी उसके मौलिक का उल्लंघन है और यह उसकी निजता और सम्मान के अधिकार का सीधा हनन है। हेगड़े जो बयान दे रहे हैं उसका जवाब सुप्रीम कोर्ट हादिया मामले में दो टूक दे चुका है।
अदालत का कहना है कि एक वयस्क महिला को अपने जीवन में स्वतंत्रता से निर्णय लेने का निर्विवाद अधिकार है और इसमें कोई अंतरविरोध नहीं हो सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि एक अवयस्क स्त्री की रक्षा करना, उसके पिता, उसके भाई और समस्त घर वालों (जिसमे माँ, बहन, दादी एवं अन्य भी शामिल हैं) की जिम्मेदारी है लेकिन एक वयस्क महिला के पास उसकी इच्छा का अधिकार है और उसे उसके लक्ष्यों का पीछा करने से किसी प्रकार से रोका नहीं जा सकता है।
हम अनंत हेगड़े के बयान और उसके पीछे की मानसिकता के सख्त खिलाफ हैं और उसकी निंदा करते हैं। भारत, जोकि एक स्वतंत्र देश है वहां ऐसी सोच को दरकिनार किया जाना चाहिए।
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