आध्यात्मिक प्रवचनकर्ता, मोरारी बापू ने मुंबई की लगभग 200 यौनकर्मियों (Sex-Worker) को राम कथा सुनाकर एक अच्छी मिसाल पेश करने की कोशिश की। इस धार्मिक प्रवचन के लिए मुंबई के रेड लाइट एरिया, कमाठीपुरा की यौनकर्मियों को व्यक्तिगत रूप से मोरारी बापू द्वारा अयोध्या आमंत्रित किया गया था। लेकिन समाज के एक वर्ग को यह पसंद नहीं आया और उनका विरोध होने लगा। यह कथा 22 से 30 दिसंबर तक आयोजित की जाएगी।
भारत, विश्व के उन देशों में गिना जाता है जहाँ जनतंत्र बेहद मजबूत अवस्था में मौजूद है। लेकिन जैसा की इतिहास रहा है, जहाँ-जहाँ जनतंत्र ने अपना सर उठाने की कोशिश की है, ऐसी ताकतों ने भी जन्म लिया है जो इसे मजबूत होते नहीं देख सकती हैं। मोरारी बापू का हमारे समाज की यौनकर्मियों (या वैश्याओं) को प्रवचन के लिए अयोध्या बुलाने में कोई हर्ज नहीं। आखिर क्यों विचारों पर केवल एक वर्ग, मसलन समाज के नजर में ‘अच्छे और आदर्शवादी’ लोगों की मोनोपोली होनी चाहिए?

एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि वैश्याओं को अयोध्या लाकर, वहां की पावन भूमि को अशुद्ध किया जा रहा है। इस तर्क (कुतर्क पढ़ें) से आखिर कैसे निबटा जाए? मुझे ठीक-ठीक याद है कि पिछले वर्ष मई में अयोध्या के 5 साधुओं द्वारा एक युवती एवं उसकी माँ के साथ पिछले 1 साल से दुष्कर्म करने की घटना ने पूरे उत्तर प्रदेश को हिला कर रख दिया था।
क्या ऐसे कृत्यों से अयोध्या की पावन भूमि दूषित नहीं होती? क्या हमे इन ऐसी घटनाओं पर चिंता व्यक्त करने के बजाये, सेक्स-वर्कर्स द्वारा अयोध्या में प्रवचन सुने जाने का विरोध करना चाहिए?

अयोध्या में डांडिया मंदिर के महंत, भरत व्यास कहते हैं,
भगवान राम की नगरी में सेक्स-वर्कर्स का इकट्ठा होना अच्छा संदेश नहीं है। यह वह शहर है जहां भक्त अपने पापों को धोने आते हैं। मोरारी बापू, आखिर क्या संदेश देना चाहते हैं। हम अयोध्या के महंत, इस कदम का पुरजोर विरोध करते हैं।
अतीत में थोड़ा पीछे चलते हैं और अयोध्या की ही बात करते हैं। शायद यह बात जानना हम सभी के लिए जरुरी है कि, रावण के वध के बाद जब भगवान् राम अयोध्या लौटे तो उनकी वापसी के जश्न में कौन शामिल था। इस बात का उल्लेख मिलता है कि अयोध्या में भगवान् राम के लिए जो स्वागत समारोह आयोजित हुआ था उसमे वेश्याओं ने भाग लिया था।
और राम के भाई भरत (जिनके नाम पर हमारे देश को आगे चलकर भारत कहा गया) ने उन वैश्याओं से स्वयं आग्रह किया था कि वे इस समारोह में शामिल हों और इस उत्साव में नाचें भी। अगर स्वयं भगवान राम की मौजूदगी में वैश्याएं उत्सव में शामिल हो रही थी तो अब उसी भूमि पर उनकी मौजूदगी से हमारे समाज के ठेकेदारों को क्या दिक्कत है?

इस मामले पर मोरारी बापू का कहना है कि,
मैं वंचित तबके को संबोधित करूंगा क्योंकि भगवान राम का जीवन स्वीकार्यता एवं सुधार केंद्रित परिवर्तन पर आधारित था।”
बात अगर नैतिकता की भी है तो आखिर हम अपने बीच मौजूद सबसे कमजोर वर्ग के लोगों को पीछे छोड़कर, समाज में नैतिकता को स्थापित कैसे कर सकते हैं? भले ही लोग वैश्यावृति (या सेक्स वर्क) के बारे में क्या सोचते हों, भले ही वैश्यावृति की कानूनी वैधता कुछ भी हो, लेकिन हमारा समाज ऐसे लोगों के मानवाधिकारों और सामाजिक अधिकारों से इनकार नहीं कर सकता है।
हमारी और आपकी ही तरह, उनके पास अपने सपने हैं, रीति-रिवाज हैं, सोच है, और सबसे जरुरी, उनका अपना अस्तित्व है। उनके पास यह अधिकारी भी है की उनके साथ गरिमापूर्ण व्यवहार हो।

हमारे और आपके आस-पास ऐसा एक भी उदहारण नहीं मिलेगा जहाँ किसी ने वैश्यावृति में अपनी मर्जी से पाँव रखे हों। समाज में असमानता, शिक्षा की कमी, बेरोजगारी, एवं गरीबी, उन प्रमुख कारणों में से है जिसके चलते किसी बेटी, किसी बहन, किसी पत्नी एवं किसी माँ को इस दलदल में पाँव रखने पड़ते हैं।
समाज का एक हिस्सा होने के नाते हम अपनी विफलता को कैसे नकार पा रहे हैं? मोरारी बापू द्वारा लिए गए इस निर्णय का हमे विरोध न करते हुए समर्थन करना चाहिए, क्यूंकि एक समाज के रूप में हमारी नाकामी को वे अपने स्तर से सुधारने का प्रयास कर रहे हैं, वो भी कैसे? ज्ञान बाँट कर और समाज के ठेकेदारों को इस कदम पर नकारात्मक टिपण्णी देने का हक़ नहीं होना चाहिए।

वर्ष 2011 में, बुद्धदेव करमासकर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (क्रिमिनल अपील नंबर 135 ऑफ़ 2010) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह साफ़ किया था कि, “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सेक्स-वर्कर्स को भी सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, क्योंकि वे भी इंसान हैं और उनकी समस्याओं पर भी हमे ध्यान देने की जरूरत है”।

कोर्ट ने आगे यह भी माना था कि, एक महिला को वैश्यावृति में खुशी नहीं मिलती बल्कि गरीबी के चलते वेश्यावृत्ति में लिप्त होने के लिए उसे मजबूर किया जाता है। अगर ऐसी महिला को कुछ तकनीकी या व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर दिया जाता है, तो वह ऐसे व्यवसायिक प्रशिक्षण द्वारा अपनी आजीविका अर्जित करने में सक्षम होगी।
जहाँ हमारा उच्चतम न्यायालय, यौनकर्मियों के लिए इतनी प्रगतिशील सोच के साथ कार्य कर रहा है तो वहीँ हमारे समाज में इन महिलाओं द्वारा प्रवचन सुनने भर की ख़बरों से खलबली मच जाती है।
आपको बताते चलें कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में ‘गणिका’ (यौनकर्मियों) का उल्लेख किया है। यह इस बात को पुख्ता करता है कि, हमारा इतिहास, संस्कृति एवं रीतियां इस बात की गवाह रही हैं कि सेक्स-वर्कर्स का अस्तित्व, समाज की एक सच्चाई है।

हमारा हमारा आज का समाज उन्हें हाशिये पर छोड़ने की बात करता है, लेकिन हमे यह समझना होगा कि उनका मुख्य धारा में आना बेहद जरुरी है। तभी यथास्थिति में कुछ परिवर्तन संभव होगा। इसपर आप भी सोचे।
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