ऐसे समय में जब सांप्रदायिक हिंसा आये दिन समाज को नुक्सान पहुँचाती रहती है और सांप्रदायिक दंगों के चलते कई लोग अपनी जान खो देते हैं, इस तरह के उदाहरण का सामने आना हमे बहुत उम्मीद देता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के जैनपुर गांव के निवासियों ने एक जबरदस्त उदाहरण तब पेश किया जब वहां आपसी सौहार्दय के चलते मुस्लिमों ने शिव मंदिर के आंगन में नमाज़ पढ़ी।
हाँ, एक मंदिर में मुस्लिम धर्म के लोगों द्वारा अपने तरीके से अपने ईश्वर को याद किया गया। यह उदाहरण न केवल इंसानियत की प्रति हमारे विश्वास को मजबूत करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि ईश्वर एक है।
रविवार दोपहर को, बुलंदशहर में हजारों इस्लाम अनुयायी इकट्ठे हुए, जो तीन दिवसीय इस्लामी त्यौहार, ताब्लिगी इज्तेमा के अंतिम दिन में भाग लेने आये थे। चूँकि उक्त जगह भारी भीड़ और अराजकता मौजूद थी, इसके चलते कुछ मुस्लिम भाई, समय रहते मुख्य मस्जिद तक नहीं पहुंच सके। यही वह समय था जब गांव के लोगों ने उन मुस्लिम भाईओं की प्रार्थना को मुकम्मल अंजाम पहुंचाने हेतु शिव मंदिर के द्वार खोल दिए।
मंदिर प्रबंधन समिति के एक सदस्य, चौधरी साहब सिंह ने कहा,
प्यार प्रार्थना है और प्रार्थना प्यार है, और इस परस्पर मेल में हमने बस अपनी एक छोटी सी भूमिका निभाई है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया कि, दरअसल जब नमाज का समय हो चला, तो जो मुस्लिम पुरुष मुख्य मस्जिद तक नहीं पहुंच पाए थे, उन लोगों ने जैनपुर गाँव के लोगों को अपनी समस्या बताई, और फिर उन गाँव वालों ने मंदिर समिति के सदस्यों के साथ इस मामले पर चर्चा करने में समय नहीं लगाया। समिति के सदस्यों ने तुरंत उन मुस्लिम भाइयों के लिए मंदिर का द्वार खोलने का फैसला लिया। इसके तुरंत बाद ‘वाजू’ के लिए शिव मंदिर में मौजूद पानी के नल खोले गए और नमाज के लिए मैट लगाए गए। शिव मंदिर के पुजारी अमर सिंह ने समझाते हुए बताया,
“प्यार और भाईचारे का संदेश दूर दूर तक फैलाया जाना चाहिए। कुछ मुस्लिम भाई यहां यातायात जाम में फंस गए थे और वह भी तब जब नमाज का समय हो गया था। चूंकि उनके पास प्रार्थना करने के लिए कोई अन्य जगह उपलब्ध नहीं थी, इसलिए हमने उनके लिए शिव मंदिर के द्वार खोल दिए और उनसे अंदर आने के लिए कहा।”
गौरतलब है कि वहां के ग्रामीणों ने बैठकर, मुसलमानों के लिए नमाज की पेशकश करने हेतु मंदिर के द्वार खोलने के लिए एकजुट होकर फैसला किया। रविवार को शहर में बहुत सारे मुसलमान भाई ‘तब्लिगी इज्तेमा’ के लिए मौजूद थे। चौधरी साहब सिंह ने कहा,
जब उनमें से कुछ हमारे पास आए और मंदिर परिसर के अंदर प्रार्थना करने का अनुरोध किया, तो हमारे पास कोई वजह नहीं थी कि हम ऐसा होने से इनकार कर सकते थे।
ऐसे समय में, जब सांप्रदायिक दंगों की चिंगारी लगने में ज्यादा समय नहीं लगता है, तब इस तरह की घटनाओं के जरिये एक उदाहरण सामने आता है और वो यह है कि हम सब एक ही मां के बच्चे हैं और हमें एक दूसरे के साथ सौहार्दय पूर्वक रहने की जरुरत है। हम सभी इंसान हैं और उससे बड़ा कोई धर्म नहीं. हमें उम्मीद है कि ऐसी घटनाएं अलग-अलग समुदायों में घृणा फैलाने लोगों के लिए एक सबक के तौर पर काम आएंगी।
यह स्टोरी मूल रूप से शुभा श्रीवास्तव द्वारा Chaaipani के लिखी गयी, आप इसको यहाँ पढ़ सकते हैं।
Bringing you independent, solution-oriented and well-researched stories takes us hundreds of hours each month, and years of skill-training that went behind. If our stories have inspired you or helped you in some way, please consider becoming our Supporter.