सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर 10 से 50 वर्षीया महिलाओं के प्रतिबन्ध को अदालत ने पिछले साल सितम्बर में हटा दिया था। केरल हाई-कोर्ट ने भी केरल की अगस्त्याकुऱडम चोटी पर महिलाओं द्वारा चढ़ाई न करने के अनौपचारिक प्रतिबन्ध को पिछले वर्ष नवम्बर में हटा दिया था। इसके बाद के. धन्या सनाल, इस चोटी पर पहुंचने वाली प्रथम महिला बनी। जानिए यह कहानी।
कहते हैं कोयले को जितना दबाओ, वो उतना ही बेहतर हीरा बनकर उभरता है। यह हमारे समझने का फेर है, कि हम उसे कोयला समझते हैं, दरअसल वह हमेशा से हीरे का मुख्य आधार होता है जिसे मानव प्रजाति हमेशा से दबाती आयी है। महिलाएं भी वही हीरा हैं जिन्हे दशकों से दबाया गया, कुचला गया, दोयम दर्जे का समझा गया। लेकिन आज के दौर में देखा जाए तो महिलाओं ने स्वयं के लिए रास्ते तय करने शुरू करदिये हैं और वो सबकुछ भुला कर बस अपने अंदर की प्रतिभा का लोहा मनवाने के लिए तत्पर हैं।
हाल ही में सबरीमला मंदिर में प्रवेश को लेकर विवाद रहा। इस मुद्दे पर हमारा विश्लेषण आप यहाँ पढ़ सकते हैं। इससे पहले कि हम आपको बताएं कि केरल की के. धन्या ने क्या कमाल किया है, आपको उस पहाड़ का इतिहास समझा देते हैं जिसपर चढ़ने वाली धन्या प्रथम महिला बनी।
नेय्यर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में स्थित अगस्त्याकुऱडम छोटी, केरल हाईकोर्ट द्वारा पिछले नवंबर में फैसला सुनाए जाने के बाद पहली बार वार्षिक ट्रेकिंग के लिए खोला गयी थी। केरल हाई कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि ट्रेकर्स पर कोई लिंग-आधारित प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा। दरअसल इस चोटी की तलहटी पर रहने वाली स्थानीय कानी जनजातियों ने महिलाओं द्वारा ऊंचे शिखर के स्केलिंग का विरोध किया है। उन्होंने महिलाओं द्वारा चोटी पर चढ़ने की अनुमति देने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन अदालत के आदेश के मद्देनजर धन्या सहित ट्रेकर्स को रोकने का उन्होंने प्रयास नहीं किया।
कानी समुदाय के लोगों के अनुसार, पर्वत श्रृंखला उनके देवता अगस्त्य मुनि ’का पवित्र निवास स्थान है, जो पौराणिक हिंदू ऋषि हैं जिन्हें वे अपना संरक्षक मानते हैं। चूँकि इस चोटी पर अगस्त्या मुनि का मंदिर है, इसलिए महिलाओं को पारंपरिक रूप से चोटी पर चढ़ने की अनुमति नहीं है। केरल वन विभाग, जो ट्रेकिंग कार्यक्रम का आयोजन करता है, ने कहा कि इस साल कुल 4,700 लोगों ने पंजीकरण कराया था, जिनमें 100 महिलाएं थीं। चोटी पर चढ़ने के उद्देश्य से पंजीकरण कोर्ट के आदेश के बाद खुला था।
अब आते हैं, धन्या सनाल पर जिन्होंने इस चोटी पर चढ़ने वाली प्रथम महिला होने का गौरव प्राप्त किया। तिरुवनंतपुरम में रक्षा मंत्रालय की प्रवक्ता, 38 वर्षीय धन्या सनाल पूरे जज्बे के साथ इस चोटी पर पहुंचने वाली पहली महिला बनी। उनका कहना था,
यह यात्रा जंगल को बेहतर ढंग से समझने और अनूठे अनुभव को दूसरों के साथ साझा करने के लिए थी।
लोगों को 23 किमी इस ट्रेक को पूरा करना होता है, यह ट्रेकिंग सेशन 47 दिनों का है। धन्या ने चढ़ाई 14 जनवरी को शुरू की।
धन्या कहती हैं- “मैं शारीरिक तौर पर पूरी तरह फिट हूं। मैं हर रोज वर्कआउट करती हूं। आदमी और औरत, हर किसी को स्ट्रॉन्ग होने की जरूरत है। महिलाओं की एंट्री पर बैन लगाने का ये कोई प्वॉइन्ट नहीं है। मैं अक्सर ही ट्रेकिंग करती हूं। और मैं मेंटली और फिजिकली दोनों ही तरह से इस कठिन रास्ते के लिए तैयार हूं।”
धन्या सनाल ने केरल उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, महिलाओं के उक्त चोटी पर प्रवेश पर लगे ’अनौपचारिक’ प्रतिबंध को औपचारिक रूप से हटा दिया है। उन्होंने बोनकाउड से पारंपरिक वन पथ के माध्यम से पुरुष ट्रेकर्स के साथ यह यात्रा शुरू की थी। उनके द्वारा इस पहाड़ी पर फ़तेह प्राप्त करने का सिंबॉलिक महत्व भी है। वह महत्व और कुछ नहीं, बस यह है कि महिलाएं किसी से कम नहीं और उन्होंने रोकना नामुमकिन है।
चायपानी, तमाम तरह के दकियानूसी प्रतिबंधों का पुरजोर विरोध करता है और महिलाओं के समानता के अधिकार की वकालत करता है। हम धन्या को धन्यवाद् देते हैं कि उन्होंने यह कदम उठाते हुए अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा दी है।
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