शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मरने वालों का बाकी यही निशां होगा।
यह बात न केवल हमारे देश को आजादी दिलाने वाले शहीदों के लिए उपयुक्त थी, बल्कि यह बात उन पर भी लागू होती है जो आज के दौर में हमारे देश को तमाम समस्याओं से आजादी दिलाने के लिए प्रयासरत हैं। यह महज़ 2 पंक्तियाँ नहीं, बल्कि मौजूदा समय में देश के लिए दिए जा रहे बलिदान को लेकर पूर्व जितनी ही प्रासंगिक भी हैं।
प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल (पूरा नाम – स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद), शायद आज के बाद यह नाम ही काफी होगा यह बताने के लिए की हमारी गंगा दूषित है और इसे साफ़ करने के लिए देश ने एक व्यक्ति की कुर्बानी भी देख ली है। हमारे आज के ज़माने के शहीद और नायक, जी.डी. अग्रवाल पिछले 22 जून से गंगा नदी के बचाव को लेकर भूख हड़ताल पर थे। अफ़सोस उनकी यह हड़ताल बिना किसी नतीजे पर पहुंचे उनकी जीवन लीला को समाप्त कर गयी। हम इस लेख में उनके बारे में, उनकी उपलब्धियों के बारे में और उनके गंगा को लेकर मुहीम पर चर्चा करेंगे।
20 जुलाई 1932 को जन्मे प्रोफेसर अग्रवाल, भारतीय पर्यावरण, इंजीनियर, प्रोफेसर, साधु और पर्यावरण कार्यकर्ता थे. प्रोफेसर अग्रवाल एक ज़माने में कानपुर के विश्व प्रख्यात संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में पढ़ाते थे। वह, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व सदस्य सचिव भी थे। जिन लोगों ने उन वर्षों के दौरान उनके साथ समय बिताया और काम किया था, वे अब भी उनके कार्य की प्रशंसा करने से नहीं थकते हैं।
सीपीसीबी में रहते हुए उन्होंने भारत के प्रदूषण नियंत्रण नियामक संरचना को आकार देने में अहम् भूमिका निभाई थी। वह भारत की पर्यावरण गुणवत्ता में सुधार के लिए नीति बनाने और प्रशासनिक तंत्र को आकार देने वाली विभिन्न सरकारी समितियों के सदस्य भी रहे।
111 दिनों तक चली उनकी भूख हड़ताल के पीछे का मुख्य कारण गंगा नदी को बचाना था। उन्होंने 24 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में बताया कि वो गंगा को हो रहे नुकसान को लेकर चिंतित हैं और वो चाहते हैं कि उनकी सरकार गंगा को बचने के लिए उचित कदम उठाये।
इसके अलावा उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में इस बात को लेकर भी दुःख व्यक्त किया कि मौजूदा केंद्र सरकार ने गंगा नदी को बचाने के लिए जो तमाम वादे किये थे, उसपर उनकी सरकार खरी नहीं उतर पायी है। उन्होंने केंद्र सरकार पर जलमार्ग बनाने, पानी के रुख को मोड़ने और अधिक परियोजनाओं के निर्माण का आरोप भी लगाया।
उनकी प्रमुख मांगें,
1- अलकनंदा, भागीरथी, धौलीगंगा, पिंडरगंगा एवं अन्य सहायक नदियों पर केंद्रित परियोजनाओं को उचित हल निकालने तक रोका जाए।
2- न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा तैयार गंगा संरक्षण विधेयक को संसद में लागू किया जाए और उसका कार्यान्वयन किया जाए।
3 – गंगा परिषद (20 सदस्यों वाले) का निर्माण किया जाए, जिसमे सरकारी और गैर-सरकारी व्यक्तियों, जो गंगा नदी के लिए काम कर रहे हों, को जगह दी जाए। नदी को प्रभावित करने वाले किसी भी परियोजना को प्रभाव में लाने से पहले इस परिषद की सहमति को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया जाए।
वो अक्सर कहते थे कि वो हर उस संभव प्रयास को अंजाम देंगे जिससे गंगे माँ का बचाव किया जाए। उनके द्वारा दिखाए गए समर्पण को सरकारी तंत्र के अलावा शायद सबने देखा। 13 जून को लिखे एक और पत्र में उन्होंने सरकार के सामने फिरसे अपनी मांगों को रखा और कहा कि हरिद्वार के निकट बालू खदान पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाए।
इसके बाद अपनी भूख हड़ताल से पहले भी उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में भूख हड़ताल के बारे में जानकारी दी और अपनी माँगों को दोहराया। उन्होंने 5 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी को अपने तीसरे और अंतिम पत्र में लिखा।
“यह मेरी उम्मीद थी कि आप दो कदम आगे बढ़ेंगे और गंगाजी के लिए विशेष प्रयास करेंगे क्योंकि आपने एक अलग कदम बढ़ाते हुए गंगाजी से संबंधित सभी कार्यों के लिए एक अलग मंत्रालय बनाया, लेकिन पिछले चार वर्षों में आपकी सरकार द्वारा किए गए सभी कार्यों से गंगाजी को कोई लाभ नहीं हुआ है और उनके स्थान पर लाभ केवल कॉर्पोरेट क्षेत्र और कई व्यावसायिक घरों को ही हुआ है। “
जब किसी भी प्रकार से सरकार की तरफ से उन्हें कोई जवाब या भरोसा नहीं मिला तो उन्होंने अक्टूबर 9 से जल ग्रहण करना भी बंद करदिया। सरकार ने आनन फानन में उन्हें ऋषिकेश के एम्स में भर्ती कराया गया। एम्स में हुए परीक्षणों में पाया गया कि उनके शरीर में पोटेशियम की कमी हुई है और निर्जलीकरण के स्तर में भी वृद्धि हुई है, इसके बाद उन्हें बताया गया कि उन्हें एम्स, दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। लेकिन प्रोफेसर अग्रवाल, भूख हड़ताल की उस जगह से हटना नहीं चाहते थे।
“वह कहीं और नहीं जाना चाहते थे। उन्होंने उनसे कहा कि वह नहीं जाना चाहते हैं। उनकी हालत अचानक से उस समय बिगड़ गयी जब उन्हें यह बताया गया कि उन्हें जबरन दिल्ली ले जाया जायेगा,” उनकी देखभाल करने वाले प्रेम ने वायर को बताया।
और फिर 11 अक्टूबर को, दिल के दौरा पड़ने से, भारत ने अपने ग्रीन योद्धा को लगभग 1.30 बजे खो दिया और इसी तरह संघर्ष की राह में एक और आवाज चुप हो गई। एक बार फिर, पर्यावरण को बचाने की कोशिश कर रहे कई लोगों की उम्मीदों को कुचल दिया गया और फिरसे, सरकारी तंत्र ने जीत हासिल की और गंगा नदी, अपने एक बेटे को हार गयी।
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