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लखनऊ की इस मुहिम के जरिये मानसिक रोग का दंश झेल चुके लोगों को मिल रहा है रोजगार: पढ़िए ‘केतली’ की पूरी कहानी

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‘केतली’ एक सामाजिक अड्डे के तौर पर काम करता है, जहाँ लोग बातचीत, चर्चा और समय बिताने के लिए आते हैं। ‘केतली’ का लक्ष्य, मानसिक रोग के दर्दी जो साजा होने के मार्ग पर आगे बढ़ चुके, ऐसे लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करके कुछ सामाजिक परिवर्तन करने की कोशिश करना है।

भारत एक स्वंतत्र देश है, यहाँ सभी को एक बेहतर जिंदगी जीने और रोजगार प्राप्त करने की आजादी का अधिकार है। लेकिन हमारे समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जिसपर आमतौर पर हमारा ध्यान भले न जाता हो, लेकिन उन्हें भी यह अधिकार है कि वो अपने लिए रोजगार के अवसर तलाश सकें और एक बेहतर जीवन जी सकें। हम ऐसे लोगों की बात कर रहे हैं जो मानसिक रोग के पीड़ित रहे हैं और अब वो उस रोग से उबर चुके हैं और मुख्यधारा के समाज में सम्मिलित होने का प्रयास कर रहे हैं। चूँकि ऐसे साथी काफी समय तक समाज से कटे, अलग-थलग रहे हैं, इसलिए एक आम जीवन जीने में उन्हें शुरुआत में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह मुश्किलें तमाम प्रकार की होती हैं, इनमे मुख्य समस्या रोजगार हासिल करने की है।

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Picture Courtesy – India Today

क्यूंकि ऐसे साथियों को रोजगार प्राप्त करने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है, तो इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि ये कभी भी मुख्य धारा के समाज से नहीं जुड़ पाते हैं। और इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए ‘केतली‘ की नीव पड़ी। बचपन के दोस्त और अब विवाहित जोड़े, अम्बरीन अब्दुल्लाह और फहाद अज़ीम के द्वारा इस पूरी मुहिम को नंबर 2016 में शुरू किया गया था। जहाँ अम्बरीन ने मेन्टल हेल्थ में ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज’ से मास्टर्स किया है, वहीँ फहाद ने मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। दोनों ‘केतली’ के जरिये ऐसे लोगों का सहारा बनते हैं जिन्होंने अपनी बीमारियों के बोझ के कारण जीवन में कभी भी काम नहीं किया है या काम से बाहर निकल दिए गए थे। ‘केतली’ के अंतर्गत, एक उपयुक्त प्रशिक्षण केंद्र की मदद से, ऐसे साथियों के काम और कार्य में आने वाली बाधाओं को संबोधित किया जाता है।

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चायपानी के साथ बातचीत में केतली की सह-संस्थापक, अम्बरीन बताती हैं, 

केतली अनिवार्य रूप से ऐसे साथियों के सामाजिक कौशल को प्रभावित करने पर काम करता है, जिन्हे ‘स्किज़ोफ्रेनिया’, ‘प्रेरक बाध्यकारी विकार’ और ‘द्विध्रुवीय विकार’ जैसे मानसिक विकारों का सामना करना पड़ा है। चूँकि वे बहुत लंबे समय तक सामाजिक वातावरण का हिस्सा नहीं रहे हैं इसलिए उन्हें सामाजिक जीवन जीने में मुश्किल होती है।

‘केतली’ द्वारा ऐसे साथियों के लिए एक कृत्रिम रूप से सामाजिक वातावरण तैयार किया जाता है, जिसमें प्ले थेरेपी, संज्ञानात्मक थेरेपी, व्यवहार और जीवन कौशल प्रशिक्षण शामिल हैं, जो पूरी तरह से कामकाजी माहौल में प्रवेश करने के लिए उनका समर्थन करता है। पूरी टीम बेहद खुशनुमा माहौल में कार्य करती है, और ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता की ‘केतली’ की टीम किसी भी प्रकार की चिंताओं को अपने काम के बीच लाती है।

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अम्बरीन बताती हैं, “हमारा यह मानना है कि हर व्यक्ति को समाज के मुख्य धारा से जुड़ने का अधिकार है। हम इसी सोच के साथ मानसिक रोग के दर्दियों (जो साजा होने के मार्ग पर आगे बढ़ चुके हैं) के साथ काम करते हैं। हम ऐसे साथियों को मझधार से पार पाने में मदद करते हैं”।
केतली का मकसद ऐसे मानसिक रोगियों को ढूँढना (मीडिया, डॉक्टरों और अन्य विशेषज्ञों की मदद से) है, जो साजा (recover) होने के मार्ग पर आगे बढ़ चुकें हैं, यानी वो उबरने की अवस्था में हैं। केतली, सर्वप्रथम ऐसे लोगों को ट्रेनिंग के जरिये एक आम जीवन जीने में मदद करता है, मसलन उन्हें दैनिक दिनचर्याओं के बारे में जानकारी दी जाती है, जहाँ वो आम तौर पर किये जाने वाले कार्यो को करने में निपुण हो सकें (जैसे पैसे गिनना, रोड पार करना, कोई खेल खेलना इत्यादि)।

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इसके बाद इन्ही लोगों को एक एंटरप्राइज सँभालने में मदद की जाती है, जैसे केतली की ट्राली पर इन्हे 1-1.5 साल तक काम करने का अवसर दिया जाता है। केतली कार्ट पर ऐसे साथियों के काम की निगरानी, एक स्वयंसेवक द्वारा की जाती है और उनके प्रदर्शन को भी रिपोर्ट किया जाता है।
इसके साथ ही, एक टीम सदस्य की उपस्थिति, इन साथियों को विक्रेताओं से बात करने, उत्पाद बेचने और व्यवहार बनाने में मदद करती है। हालांकि, ‘केतली’ का मुख्य उद्देश्य उन्हें इन चुनौतियों से स्वयं से निपटने के लिए, पर्याप्त रूप से कुशल बनाना है।

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अम्बरीन बताती हैं,

हम अपने साथ काम कर रहे साथियों को बाकायदा MGNREGA के नियमानुसार प्रति घंटे के हिसाब से पैसे भी देते हैं। केतली, सहायक रोजगार की पद्दति पर कार्य करता है। इसके बाद इन सभी साथियों को मुख्य धारा के समाज में रोजगार तलाशने में मदद की जाती है।

चुनौतियों के बारे में बात करते हुए अम्बरीन बताती हैं, “स्टेबिलिटी या स्थाईत्व, हमारे उन लक्ष्यों में से एक है जिन्हें हम शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन बिना किसी बाहरी वित्त पोषण हासिल किये ऐसा करना मुश्किल है। वर्तमान में हम किराये की जगह पर केतली कार्ट चलाते हैं, जो हमारी लागत का एक हिस्सा है जो बताता है कि हमे अभी भी कितना काम करना है।” हालाँकि वो निवेश को लेकर बिलकुल भी चिंतित नहीं हैं, अम्बरीन का मानना है कि वो और फहाद मिलकर इस पूरी मुहिम को समाज के भले के लिए कार्यशील बनाये रखेंगे भले ही इसके लिए इन्हे कुछ भी क्यों न करना पड़ जाए। वो और फहाद, ‘केतली’ के माध्यम से अबतक 14 मानसिक रोगी के साथियों की मदद कर चुके हैं।

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Ambareen, Co-founder Kaitley
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Fahad, Co-founder Kaitley

उन्हें इस पूरे सफर में ‘प्रवाह’ नामक एनजीओ का विशेष सहयोग मिला। सामाजिक उद्यमिता की असीमित संभावनाओं की बेहतर समझ हासिल करने के लिए, ‘प्रवाह’ ने, जो दिल्ली आधारित गैर-लाभकारी संगठन है और विभिन्न विकास कार्यक्रमों के माध्यम से युवा विकास के क्षेत्र में काम कर रहा है, उसने अम्बरीन और फहाद की इस मुहिम को काफी समर्थन दिया। अम्बरीन कहती हैं, “प्रवाह के जरिये मैंने सीखा कि अपने आप में सहानुभूति विकसित करना कितना महत्वपूर्ण है। प्रवाह ने मुझे समाज को संवेदनशील बनाने के तरीके पर परिपक्व होने में मदद की है।” वो विशेष रूप से ‘प्रवाह’ को धन्यवाद् करती हैं।

सक्सेस स्टोरी के नाम पर ‘केतली’ के पास बहुत सी खुशियों भरी कहानियां हैं। अभिषेक, जो एक समय एक प्रतिष्ठित स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे, जब वह ‘केतली’ के साथ जुड़े तो यह मालूम चला कि उन्हें ओसीडी के साथ स्किज़ोफ्रेनिया है। ‘केतली’ के साथ अपनी यात्रा में, उन्होंने उल्लेखनीय सुधार दिखाया है और अब वो अपने घर में एक जगह पर अपना स्वयं का कैफे शुरू करने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा 26 वर्षीय गुरप्रीत की भी ऐसी ही कुछ कहानी है, वो ‘केतली’ के साथ काम करते हुए तमाम तरह के कौशल में निपुण हो गए हैं, और वो अब अन्य जगहों पर नौकरी तलाश कर रहे हैं।

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Gurpreet (Middle)

‘केतली’ की ट्राली लखनऊ में हुसैनगंज क्रासिंग पर स्थापित है, यहाँ लोग आते हैं, चाय या अन्य सामानों को खरीदते हैं, और इससे जो भी लाभ मिलता है उसे इन्ही साथियों के साथ सैलरी के रूप में बांटा जाता है।

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अम्बरीन के साथ पूरी बातचीत में यह लगा कि उनके दिल में मानसिक रोग के दर्दियों के लिए कितनी संवेदनशीलता है। वो ऐसे साथियों के लिए कुछ कर गुजरना चाहती हैं। हम पूरी चायपानी की टीम की ओर से उन्हें ढेरों शुभकामनायें देते हैं और उम्मीद करते हैं कि हम और आप आगे आकर इस पूरी मुहिम में अम्बरीन और फहाद का साथ देंगे और उन्हें वो करने में अपना समर्थन देंगे जिसकी ओर समाज के बेहद कम लोगों का ध्यान जाता है।

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Sparsh Upadhyay

एक विचाराधीन कैदी हूँ। कानून की पढ़ाई भी की है। जितना पढ़ता हूँ, कोशिश रहती है कि उतना ही लिखूं भी। सच्चाई, ईमानदारी और प्रेम को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत समझता हूँ।

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