सुमित्रा महाजन, लोकसभा की स्पीकर और 1989 से लगातार इंदौर से सांसद चुनकर लोकसभा भेजी जाने वाली महिला। वो हाल ही में एक बयान देकर सुर्ख़ियों में आयी। उनका कहना है कि भारत में महिला सुरक्षा की स्थिति को मीडिया गलत तरह से पेश करता है। मसलन, महिला सुरक्षा की स्थिति उतनी भी ख़राब नहीं जितनी मीडिया द्वारा दिखाई जाती है।
ज्यादा नहीं, वक़्त में थोड़ा पीछे चलते हैं। इसी वर्ष अप्रैल में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन, रॉयटर्स मीडिया कंपनी की शाखा ने महिला सुरक्षा से जुड़ा एक अध्ययन जारी किया था। इसमें कहा गया था कि यौन हिंसा की घटनाओं, बलात्कार के मामलों में न्याय की कमी, बाल विवाह, महिला भ्रूणहत्या और मानव तस्करी जैसे बढ़ते मामलों के चलते भारत, महिलाओं के लिए विश्व का सबसे असुरक्षित देश है।
इस सर्वेक्षण के लिए किये गए साक्षात्कार में विशेषज्ञों ने कहा कि, भारत इस सूची में सबसे ऊपर इसलिए था क्योंकि 2012 में एक युवती के विवादास्पद बलात्कार और हत्या (निर्भया) के बाद से देश में सरकार ने महिलाओं को सुरक्षित महसूस कराने के लिए कुछ खास काम नहीं किया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2007 और 2016 के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराधों की रिपोर्ट में 83 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और हर घंटे बलात्कार के चार मामले सामने आये।
यह सत्य है कि इस रैंकिंग पर बहस की जा सकती है लेकिन जो सच्चाई आंकड़ों के जरिये सामने आती है क्या उसपर पर भी बहस करने की आवश्यकता है? बिलकुल भी नहीं, क्यूंकि आंकड़े झूठ नहीं बोलते।
वर्ष 2016 में जारी किये गए आधिकारिक आंकड़ों पर एक नज़र डालने भर से पता चलता है कि देश में औसतन हर 13 मिनट में एक महिला के साथ बलात्कार किया गया था; हर दिन छह महिलाओं को गैंग-रपे का शिकार बनाया जाता है; प्रत्येक 69 मिनट में दहेज के लिए एक औरत की हत्या कर दी जाती है; और हर 19 महिलाओं पर एसिड से हमला किया जाता है।
इसके अलावा यौन उत्पीड़न, स्टाकिंग, वोएरिस्म और घरेलू हिंसा के हजारों मामले में हमे देखने सुनने को मिलते हैं। हम एक निर्भया का दर्द भुला नहीं पाते कि हमारे सामने कठुआ जैसी घटनाएं आ जाती हैं, क्या हमे फिर भी इस बात के सबूत चाहिए कि भारत, महिलाओं को सुरक्षित महसूस कराने में प्रायः असफल हो जाता है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (आईआईएमसी) के 51 वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए लोकसभा स्पीकर, सुमित्रा महाजन ने कहा कि,
क्या महिलाएं सड़कों पर नहीं चलती हैं, फिर भी लोग कहते हैं कि महिलाएं भारत में सुरक्षित नहीं हैं। जब मैं विदेश जाती हूं तो लोग मुझसे पूछते हैं कि भारत में क्या हो रहा है, मैडम। आपका देश अब सुरक्षित नहीं है।
उन्होंने आगे कहा,
मैं उनसे कहती हूं कि पिछले 75 साल से मैं भारत में हूं, मुझे, मेरी बेटी या बहू को कुछ नहीं हुआ। वहां (भारत) ऐसा कुछ नहीं है। ऐसा तो आपके देश, हर देश में होता है।
इसके आगे वो यह बताना भूल गयी कि वो 1983-84 में इंदौर की डिप्टी मेयर रही हैं, 1989 से लगातार इंदौर से सांसद हैं, 1999 से 2004 तक केंद्रीय मंत्री रही हैं और मौजूदा समय में लोकसभा की स्पीकर हैं। यह बात जगजाहिर है कि जितनी सुरक्षा के बीच वो और उनका परिवार रहता है, उतनी सुरक्षा देश की हर महिला, हर बच्ची, हर माँ और हर बहू-बेटी को नहीं मिलती।
न केवल मैडम स्पीकर का यह बयान सच्चाई से कोसों दूर है, बल्कि भारत में महिला सुरक्षा की एक भ्रामक तस्वीर पेश करता है। जहाँ एक ओर मीडिया की आलोचना इस बात पर की जाती है कि वह महिला सुरक्षा के गंभीर मामलों को एक सामान नहीं समझता, मसलन कुछ मामलों को अन्य मामलों से अधिक गंभीर बनाकर पेश किया जाता है, वहीँ सुमित्रा महाजन द्वारा मीडिया से महिला सुरक्षा की एक ‘कम आलोचनात्मक’ तस्वीर पेश करने के लिए कहा जा रहा है। इस द्वन्द में असल भुक्तभोगी हमारी महिलाएं होंगी।
महिला सुरक्षा की अवस्था न केवल मौजूदा सरकार में एक दर्दनाक तस्वीर तस्वीर प्रस्तुत करती है, बल्कि पिछली और उसके पहले की तमाम सरकारों में भी यह एक समस्या रही है। जहाँ मौजूदा केंद्र सरकार के विरोध में, देश के मुख्य विपक्षी दल, कांग्रेस के अध्यक्ष, राहुल गाँधी महिला सुरक्षा की चिंताओं को लेकर प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हैं।
वहीँ, पिछली केंद्र सरकार के कार्यकाल के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री ने देश में महिला सुरक्षा की स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी।
आप स्वयं दोनों ट्वीट देखें और निर्णय लें कि क्या वाकई हमारी राजनेता इस मुद्दे को लेकर संवेदनशील हैं, अथवा नहीं।
न केवल लोकसभा स्पीकर होने के नाते, बल्कि एक सांसद होने के नाते भी यह एक गैर-जिम्मेदाराना बयान है। उनकी जिम्मेदारी तब और बढ़ जाती है जब वो पत्रकारिता के एक बड़े संस्थान में जाकर भावी पत्रकारों को सम्बोधित कर रही हों।
एक पत्रकार से एक सवाल अक्सर पूछा जाता है, आखिर सच क्या है? सच उस प्रक्रिया का नाम है जहाँ हम असहज सच्चाइयों को समायोजित करते हैं। यही एक पत्रकार का धर्म भी है, कि वो समाज की उस तस्वीर को भी पेश करे जो देखने, सुनने और समझने में भयावह है।
हमे ऐसे बयान देने से बचते हुए देश में मौजूद समस्याओं पर ध्यान देने की जरुरत है। खासकर महिला सुरक्षा से जुड़े मसलों पर सख्त नीतियों की इस देश को आवश्यकता है। उम्मीद है हमारे जन-नेता इस बात को समझेंगे।
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