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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब हमे बार-डांसर को अनैतिक चश्मे से देखना बंद कर देना चाहिए

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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र सरकार के एक सख्त कानून में ढील दे दी है। वर्ष 2005 में महाराष्ट्र में डांस बारों (और बार-डांसर) पर प्रतिबन्ध लग गया था, जिसे सुप्रीम ने वर्ष 2014 में हटा दिया। लेकिन यह कानून डांस बारों को फिर से प्रतिबंधित करने की कोशिश करता हुआ दिख रहा था। अब डांस बार मालिकों के लिए काम करना आसान हो गया है और खासतौर पर बार डांसर को उम्मीद की एक किरण मिल गयी है। न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने महाराष्ट्र प्रोहिबिशन ऑफ़ ऑब्सीन डांस इन होटल्स, रेस्टोरेंट्स एंड बार रूम्स एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ डिग्निटी ऑफ़ वीमेन (वर्किंग देयरइन) एक्ट, 2016 के महाराष्ट्र सरकार के कानून को तो बरकरार रखा है, लेकिन इसके कई प्रावधानों को रद्द या लचीला कर दिया।

भारत, एक खूबसूरत एवं विविधता से परिपूर्ण देश। जब हमे 1947 में आजादी मिली तो लोगों को यह समझाया गया था कि आजादी के बाद का भारत बेहद खुशनुमा होगा। यहाँ हमारे अपने लोगों का शासन होगा, यहाँ हमारे अपने, हमारे लिए कानून बनाएंगे और यहाँ किसी की गुलामी नहीं करनी होगी।

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आज कल चूँकि ’10 ईयर चैलेंज’, काफी मशहूर हो रहा है। तो जरुरत है कि एक चैलेंज भारत की मौजूदा और बीते वर्षों की परिस्थितियों में तुलना करने का भी लेना चाहिए। पिछले 70 सालों में हम कितना बदले हैं? रोजगार की स्थिति का आकलन तो सबसे पहले होना चाहिए।

इस लेख में हम कुछ सकारात्मक तो कुछ कड़वी सच्चाइयों के बारे में बात करेंगे। आज एक काम करिये, थोड़ा बाहर टहलने जाइये और देखिये कि ऐसे कितने लोग आपके और हमारे समाज में हैं, जो ऐसी नौकरियां कर रहे हैं, जिन नौकरियों को हम आदर्श नौकरी नहीं मानते हैं। आपको बाहर मूंगफली का ठेला लगाने वाले, रिक्शा चलाने वाले, सड़क साफ़ करने वाले एवं न जाने ऐसे कितने लोग मिलेंगे, जो नौकरी नहीं कर रहे हैं बल्कि जूझ रहे हैं। इस समाज की बेकारी, असमानता एवं अन्याय से।

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बेशक उनका काम बेहद जरुरी है, लेकिन उनमे से ऐसे कितने हैं, जिन्हे उन नौकरियों से ख़ुशी मिल रही है? लेकिन जैसा की फिल्मों में अक्सर कहा जाता है, मज़बूरी और हालात सब कराते हैं। बार डांसर का भी वही हाल है, अधिकतर महिलाओं को मज़बूरी में बार में डांसर बन कर अपने घर को पलना पड़ता है। लेकिन हमारा समाज उन्हें अनैतिक चश्मे से देखने से कभी नहीं चूकता।

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आजादी के बाद एक वादा, हमे रोजगार दिलाने एवं हमारी अच्छी आमदनी सुनिश्चित करने का भी हुआ था। लेकिन इतने सालों बाद, नौबत ये है कि देश के सर्वोत्तम पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा, पकौड़ा बेचने को भी एक प्रकार के रोजगार में गिना जाता है। लेकिन बार डांसर को बेहद असम्मानजनक नजरों से देखा जाता है।

आप थोड़ा शांति से बैठिये और सोचिये कि आखिर हम किस बात का जश्न मना रहे हैं? क्या यह था हमारे सपनों का आजाद भारत, नहीं न? सरकार की विफलताओं के बाद अगर कोई व्यक्ति अपनी कार्यक्षमता के अनुरूप कोई नौकरी करते हुए, किसी प्रकार से गुजर बसर कर रहा है और कोई अनैतिक कार्य नहीं कर रहा है तो हमे उसके जज्बे को सलाम करना चाहिए, है न?

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बार डांसर (महिलाओं के सन्दर्भ में) को यह समाज और सरकारें हमेशा से हेय दृष्टि से देखती आयी हैं। यह अपने आप में विचित्र बात है कि एक तरफ सरकार, उचित रोजगार देने में पूर्ण रूप से विफल है, वहीँ अगर कोई अपने सामर्थ्य से कोई कार्य कर रहा है तो सरकार का कानून हमे घेरने लगता है।

बार डांसर के सञ्चालन से महाराष्ट्र सरकार को हमेशा से समस्या रही है, वर्ष 2005 में महाराष्ट्र सरकार ने डांस बार पर प्रथम बार प्रतिबन्ध लगाया था, हालाँकि वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रतिबन्ध हटा दिया था और उसके बाद सरकार द्वारा पेश किए गए अधिनियम ने लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया को बहुत कठिन बना दिया था। वर्ष 2016 के बीच जब यह अधिनियम पारित किया गया था, तबसे लेकर अब तक, केवल 3 से 4 बार ही कार्यशील हैं।

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यह बात ठीक है कि इस बात की जिम्मेदारी सरकार की है कि किसी भी प्रकार से अश्लील कृत्यों पर रोक लगायी जाए, लेकिन दिक्कत इस बात में है कि सरकारों की मानसिकता, महिलाओं के प्रति और इस मामले में बार डांसर के प्रति बेहद नकारात्मक रही है। वर्ष 2016 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाया गया अधिनियम, बार डांसर की सुरक्षा के मद्देनजर न रहते हुए, बार के सञ्चालन में कठनाई पैदा करने के लिए लाया गया प्रतीत होता है। और यह सब कुछ केवल इसलिए की बार में डांस करना, हमारे समाज में अनैतिक माना जाता है। आखिर हम कैसे बार डांसर को अनैतिक कार्य में लिप्त करार दे सकते हैं? क्यों इसे सम्मान की नजरों से नहीं देखा जाता हमारे समाज में?

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सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर गंभीर रुख अपनाते हुए, हाल ही में आधिकारिक रूप से बार डांसर को उनका सम्मान वापस दिलाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कुछ बातों का ध्यान रखने को कहा है और अधिनियम में मौजूद तमाम बेवजह शर्तों को हटा दिया है। इस फैसले की मुख्य बातें कुछ यूँ हैं:-

1 – अदालत ने नृत्य क्षेत्र और बार/रेस्तरां क्षेत्र के बीच दूरी एवं और नृत्य क्षेत्र में शराब परोसने पर प्रतिबंध की आवश्यकता को हटा दिया।

2 – आपराधिक रिकॉर्ड के कोई इतिहास न होना एवं “अच्छे चरित्र” रखने वाले आवेदकों को ही बार लाइसेंस दिए जाने की आवश्यकता भी हटा दी गयी है।

3 – इस फैसले में बार डांसर को टिप दिए जाने को अनुमति दी गयी है, लेकिन उन पर धन बरसाने पर प्रतिबंध लगाया गया है।

4 – डांस बार, शाम 6 से 11.30 बजे के बीच ही संचालित हो सकते हैं। अदालत ने इस नियम को भी हटा दिया कि बार में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएँ, क्यूंकि अदालत ने इसे निजता का उल्लंघन माना।

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अदालत ने कर्मचारियों (जिनमे बार डांसर शामिल हैं) और बार संचालक के बीच लिखित अनुबंध की स्वीकृति दी है। अदालत ने बार डांसर के बैंक खातों में उनका पारिश्रमिक जमा करने और लाइसेंसिंग प्राधिकरण के साथ अनुबंध प्रस्तुत करने का आदेश दिया है, यानी अब बार डांसर और बार संचालक के बीच हुआ अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) लाइसेंस देने वाले प्राधिकरण के सामने पेश करना होगा। इससे बार डांसर के साथ धोखा नहीं हो सकेगा, एवं उनके शोषण पर भी रोक लगेगी। अब रोजगार के प्रति माह के हिसाब से होने की आवश्यकता नहीं है, और यह अब प्रदर्शन के आधार पर हो सकता है।

अदालत ने महाराष्ट्र सरकार के उक्त 2016 के अधिनियम पर तीखी टिपण्णी देते हुए कहा कि,

यह अधिनियम एक असंभव कंडीशन को पूरा करने की बात करता है और उसके चलते, मुंबई में, किसी भी स्थान पर, लाइसेंस प्रदान नहीं किया जा रहा है (क्यूंकि तमाम शर्ते बार संचालक द्वारा पूरी नहीं की जा पा रही हैं)। इसलिए, इस अधिनियम की तमाम गैरवाजिब शर्तों को मनमाना और अनुचित माना जाता है और इन्हे रद्द कर दिया जाता है।

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डांस बार गर्ल्स एसोसिएशन ने इस फैसले का स्वागत किया, दरअसल वे अनुबंध संबंधी समझौते को बरकरार रखने की लम्बे समय से मांग कर रहे थे। इस एसोसिएशन की अध्यक्ष वर्षा काले ने कहा,

यह एक अच्छा निर्णय है, जो उम्मीद करता है कि उद्योग में बहुत आवश्यक विनियमन (रेगुलेशन) आना चाहिए। हमने हमेशा डांसरों के शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, लेकिन बार डांसिंग पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाना कभी एक अच्छा समाधान नहीं था। अब हमें उम्मीद है कि इस फैसले से बार मालिकों को लाइसेंस प्राप्त करने में मदद मिलेगी और नर्तकियों को बहुत विनियमित वातावरण में उचित रोजगार मिलेगा.

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Image Courtesy: New Indian Express

इस फैसले ने न केवल बार का संचालन आसान बनाया है, बल्कि बार डांसर की आजीविका के स्रोत को पुनः जीवित कर दिया है। इस फैसले एवं इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। हमे बार डांसर के जज्बे को भी सलाम करना चाहिए कि वो अपने कौशल का उपयोग कर रही हैं और आजीविका के मामले में अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। हाँ, यह जरूर है कि अदालत के इस फैसले की आड़ में ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जिससे औरतों का अपमान हो या उनका शोषण हो। क्यूंकि ऐसा होना बिलकुल भी उचित नहीं होगा।

हमारी चायपानी की टीम, पूरी तरह से बार डांसर के साथ खड़ी है और हम अदालत के इस फैसले का खुले दिल से स्वागत करते हैं।

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Sparsh Upadhyay

एक विचाराधीन कैदी हूँ। कानून की पढ़ाई भी की है। जितना पढ़ता हूँ, कोशिश रहती है कि उतना ही लिखूं भी। सच्चाई, ईमानदारी और प्रेम को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत समझता हूँ।

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एक विचाराधीन कैदी हूँ। कानून की पढ़ाई भी की है। जितना पढ़ता हूँ, कोशिश रहती है कि उतना ही लिखूं भी। सच्चाई, ईमानदारी और प्रेम को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत समझता हूँ।

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