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आखिर कैसे वौइस् ऑफ़ स्लम्स (Voice of Slums) मुख्यधारा के समाज में वंचित वर्ग के बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए उन्हें शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करके बदल रहा है उनका जीवन, आइये जानते हैं।
झोपड़ियों में रहने वाले 11 वर्षीय देव प्रताप सिंह, एक बेहतर जीवन की तलाश में अपने घर से भाग गए थे। अगले तीन साल उन्होंने एक रेलवे स्टेशन पर ही बिताए। ऐसा बच्चा होने के नाते, जिसके पास जीवन की मूल समझ नहीं थी, वो ड्रग्स के आदी हो गए। लेकिन ड्रग्स लेने के चलते जब उनकी गिरफ्तारी हुई और उन्हें 14 दिनों के लिए किशोर जेल भेजा गया तो उनकी जिंदगी में एक मोड़ सा आ गया।
अपनी रिहाई के बाद, देव ने खुद का खर्च चलने के लिए एक छोटे से रेस्तरां में बर्तन धोने शुरू किये, जिसके लिए उन्हें 200 रूपये प्रति माह मिलते थे। हालांकि, उनके अंदर मौजूद सीखने की जिजीविषा, कड़ी मेहनत और उत्साह के चलते उन्हें जीवन में बेहतर दिन देखने थे। दिन और रात काम करने और कुछ सालों तक कुछ अजीब नौकरियां करने के बाद, उन्हें बिक्री विभाग में काम मिला। आखिरकार, इस युवा लड़के ने, जो कक्षा 5 पास करने में भी असफल रहा था और जिसके बाद उसका शिक्षा से नाता टूट गया था, बिक्री क्षेत्र में प्रबंधक के तौर पर कार्य करते हुए 40,000 रुपये प्रति माह कमाने शुरू किये।
“यह मेरे लिए एक बड़ी बात थी। मैं समझ गया था कि यदि आपके पास प्रतिभा है, तो आप कुछ भी कर सकते हैं।” चायपानी के साथ एक साक्षात्कार में देव कहते हैं.
देव ने अपने परिवार से सभी संपर्क खो दिए थे, लेकिन कुछ सालों बाद, उन्होंने अपनी मां से दोबारा संपर्क किया। उनकी माँ अपने बेटे की सफलता से अभिभूत थी। लेकिन जैसे ही देव और उनकी माँ के जीवन में खुशियां आयीं, वैसे ही देव ने अपनी मां को एक सड़क दुर्घटना में खो दिया।
“मैंने अपने जीवन का सबसे खास व्यक्ति खो दिया था। मुझे डर लगने लगा था कि मुझे जिस फोन का सबसे ज्यादा इंतज़ार रहता था, वो अब कभी नही आयेगा,” वह याद करते हुए कहते हैं।
देव इस दुर्घटना के बाद गहरे अवसाद में चले गए थे। वह उसी रेलवे स्टेशन पर वापस चले गए जहां उन्होंने अपने जीवन के तीन साल बिताए थे। लेकिन जब उन्होंने वहां अपनी एक पुरानी दोस्त को देखा, जिसने नशे की लत के कारण अपना पैर खो दिया था, तो देव के जीवन ने उन्हें वापस से पुकारा। उनके पास अब सिर्फ एक लक्ष्य था- झुग्गी झोपड़ियों में रह रहे बच्चों के लिए कुछ कर गुजरना।
वह चांदनी खान से मिले, जो कभी झोपड़पट्टी की निवासिनी और कूड़ा कचरा उठाने वाली थी। 10 साल की उम्र में, वह एक ऐसे गैर सरकारी संगठन से जुड़ी जो झोपड़पट्टी के बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पर केंद्रित था। तमाम संघर्षों से लड़ते हुए और अपने जीवन में कई मुकाम हासिल करने के बाद वह ‘बालाक नामा’ नामक अख़बार की संपादक बन गईं।
चांदनी के काम से प्रेरित होकर देव ने उनसे कहा कि वह झुग्गी में रह रहे बच्चों के लिए कुछ करना चाहते हैं। दोनों इस सपने को लेकर एकजुट हो गए और यही वह समय था जब ‘वॉयस ऑफ स्लम्स’ का जन्म हुआ था।
“वहां से शरु हुआ हमारा पागलपन। मैं वह लड़का था जिसने जिसने 5वीं कक्षा के बाद स्कूल का कभी मुँह नहीं देखा और मैं एक ऐसी लड़की के साथ जुड़ा, जिसने कक्षा 8 के बाद कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की। लेकिन हम दोनों झुग्गी में रह रहे बच्चों को शिक्षित करने के लिए एक मिशन पर थे,” वह हंसते हुए कहते हैं।
वे दोनों अपने सपनों को उड़ान देने के लिए एक जगह और वित्त की तलाश में मुंबई आए, लेकिन वास्तविकता ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। उन्हें हर जगह से अस्वीकृति का सामना करना पड़ा और उनके इस मिशन का लोगों द्वारा मज़ाक भी उड़ाया जाने लगा। देव ने कहा, “हम वो चीज़ हासिल करने निकले थे जो हमारे खुद के पास नहीं थी – ना पैसा, ना पढ़ाई।”
हालांकि, कई जगह से अस्वीकृतियाँ मिलने के बावजूद उनका दृढ़ संकल्प बिलकुल भी नहीं हिला। दोनों ने अपने-अपने फिक्स्ड डिपाजिट को तोड़ने का निर्णय लिया और इससे मिले धन को झोपड़ियां में रह रहे बच्चों को मुख्यधारा के समाज में प्रवेश करने में मदद करने के लिए अपनी लगा दिया। और इसी प्रकार से नोएडा में एक झोपड़पट्टी के अंदर एक छोटे से कमरे में वौइस् ऑफ़ स्लम की शुरआत हुई।
इसके बाद उन्होंने एक फेसबुक पेज बनाया और अंततः इस मुहीम के लिए उन्होंने विभिन्न लोगों से समर्थन प्राप्त करना शुरू कर दिया। जहाँ कुछ लोगों ने उन्हें धन के जरिये मदद की, वहीँ अन्य लोगों ने उन्हें सलाह देते हुए मदद प्रदान की। और इस तरह कदम दर कदम वॉयस ऑफ स्लम का निर्माण होता गया, जो देव और चांदनी दोनों की मेहनत का परिणाम है।
आज, वॉयस ऑफ स्लम्स एक तीन मंजिला इमारत में कार्यशील है, जो झोपड़-पट्टियों के बच्चों को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। वे फैशन डिजाइनिंग, नृत्य और फोटोग्राफी एवं अन्य कौशल सिखाने के साथ किशोरों को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बना रहा है।लगभग 110 बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा, वे फैशन डिजाइनिंग, नृत्य और फोटोग्राफी को अन्य कौशल के साथ किशोरों को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिखाते हैं।
वर्तमान में, उनके पास पांच शिक्षक हैं और दुनिया भर से लोग उनके साथ काम करने और अपने बच्चों को प्रशिक्षित करने के लिए आते हैं। वॉयस ऑफ स्लम्स के कई बच्चे अब बड़े संगठनों के साथ काम कर रहे हैं और अच्छे पैसे भी कमा रहे हैं।
“शायद मुझे ‘अवसर’ लिखना न आता हो, लेकिन मुझे पता है कि इसका उपयोग कैसे किया जाता है। चांदनी को कोई विशेष भाषा नहीं पता, लेकिन वह ये जानती हैं कि काम कैसे किया जाए,” देव कहते हैं.
भले ही देव और चांदनी को अपने जीवन में बुनियादी चीजों को पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा हो, लेकिन वे उठ खड़े हुए और ऐसी तमाम बुनियादी चीजों को अन्य बच्चों को प्रदान करने के लिए भाग्य से लड़े। वॉयस ऑफ़ स्लम्स के साथ, उनका लक्ष्य है कि वे जितने लोगों की ज़िंदगी बदल सकते हैं, वे बदलना चाहते हैं और इन बच्चों को मुख्यधारा के समाज का हिस्सा बनने में मदद करना चाहते हैं, जिससे वे उच्च आत्मविश्वास और सर्वोत्तम कौशल के साथ जीवन में आगे बढ़ सकें।
वह कहते हैं, “हम मजबूत हैं लेकिन आपकी मदद से हम और ज्यादा मजबूती से खड़े हो सकते हैं”।
वौइस् ऑफ़ स्लम्स, एक आत्म-निर्भर एनजीओ बनने के लिए वित्त पोषण अभियान (क्राउड-फंडिंग) चला रही है। आप भी उनकी मदद के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा सकते हैं।
यह कहानी मूल रूप से चायपानी अंग्रेजी के लिए शुभा श्रीवास्तव ने लिखी है।
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