29 नवंबर और 30 नवंबर को, एक लाख से अधिक किसान, कृषि मजदूर और विस्थापित ग्रामीण, दिल्ली में किसान मुक्ति मार्च में भाग लेंगे। यह लोग देश के हर कोनों से दिल्ली पहुंचे हैं, वो उम्मीद कर रहे हैं कि इस मार्च में उनका साथ देश का प्रत्येक नागरिक देगा। इस पूरे मार्च को सोशल मीडिया पर #दिल्ली_चलो नाम से प्रचारित किया जा रहा है।
दिल्ली, देश की राजधानी और किसी भी आंदोलन का स्वाभाविक केंद्र भी। आज, यानि 29 नवम्बर और 30 नवम्बर को देश भर के तमाम किसान दिल्ली में होंगे और वो कुछ मांगों को लेकर मार्च करेंगे। जहाँ 29 नवम्बर को वे रामलीला मैदान में इकट्ठे होंगे, वहीँ अगले दिन, यानी 30 नवम्बर को वे संसद की ओर मार्च करेंगे। आपको बता दें कि इस पूरे आंदलोन का मकसद, दो प्रमुख मांगों को राष्ट्रपति के समक्ष रखना है।

किसानों की मुख्य मांग है कि कृषि संकट के लिए एक 21 दिवसीय संयुक्त संसदीय सत्र समर्पित किया जाए। इसके अलावा वो चाहते हैं कि किसानों के ऋण और उनकी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्यों की गारंटी के लिए दो बिल पास किये जाएँ। यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘दिल्ली चलो’ मार्च के चलते नरेंद्र मोदी सरकार को बैकफुट पर आना पड़ सकता है क्योंकि वर्ष 2014 में सरकार में आने के बाद से लेकर अबतक किसानों द्वारा किया जाने वाला यह सबसे बड़ा मार्च है।

यह मार्च अखिल भारतीय किसान संघ समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के बैनर के तहत आयोजित किया जा रहा है, जो पूरे देश के लगभग 200 किसान समूहों का एक संघ है। एआईकेएससीसी के अनुसार, किसानों को कृषि मजदूरों और विस्थापित ग्रामीण भारतीयों का साथ मिलेगा, जो पिछले लगभग तीन दशकों से कृषि संकट का सामना कर रहे हैं। उनका कहना है कि पिछली तमाम सरकारों ने ग्रामीण इलाकों के विनाश और किसानों के अनियंत्रित विनाश को होते हुए देखा है और अभी तक उन सरकारों द्वारा इस दुर्दशा को खत्म करने के लिए बहुत कम काम किया गया है। पिछले 20 वर्षों में 300,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कि है, जो एक गंभीर बात है।

मौजूदा दौर में (और खासकर मौजूद सरकार के कार्यकाल में) किसानों की समस्या पर बात करते हुए अखिल भारतीय किसान संघ समन्वय समिति के संयोजक, वी. एम. सिंह ने कहा,
पिछले 1.5 सालों से, किसान पूरे देश में विरोध कर रहे हैं। यह किसानों के लिए एक संकेत है कि सरकार ने अभी भी उनके संकट को गंभीरता से नहीं लिया है।
किसानों और कृषि मजदूरों के अलावा, आयोजकों को ‘नेशनल फॉर किसान’ नामक एक नए मंच के बैनर के तहत कई हजार छात्रों, कलाकारों और मध्यम श्रेणी के शहरी पेशेवरों को आकर्षित करने की उम्मीद है।

पी. सांईनाथ, जो एक अनुभवी ग्रामीण पत्रकार और फोरम के पीछे का प्रमुख चेहरा हैं, कहते हैं कि वह उन डॉक्टरों, वकीलों और व्यापारियों से प्रेरित थे, जिन्होंने हाल ही में नाशिक से मुंबई तक मार्च करके पहुंचने वाले आदिवासी किसानों से जुड़ने के लिए कदम उठाये था। उन्होंने कहा,
वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद, किसानों और शहरी भारतीय उपभोक्ताओं के बीच का संबंध टूट गया था। अब हम उस संबंध को फिर से जोड़ रहे हैं। यह केवल एक मार्च नहीं है; यह एक ऐतिहासिक शुरुआत है।

यह मार्च, किसानों की आकांक्षाओं का प्रतीक है, और हमे उनके समर्थन में आगे आने की जरुरत है। आप सभी उनके इस मार्च का समर्थन, उनकी वेबसाइट पर पेटिशन साइन करके कर सकते हैं। हम पूरी टीम की ओर से इस मार्च के शांतिपूर्वक रूप से सफल होने की कामना करते हैं। जय जवान, जय किसान।
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