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‘क्या हमारा आज का मीडिया संवैधानिक और जनतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कर रहा है१’: विनीत कुमार

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भारत में हर साल राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस, 17 नवंबर को मनाया जाता है। इस दिन हम भाषण, विचारों और गुणों की स्वतंत्रता के साथ-साथ हमारे समाज को आकार देने में मीडिया की भूमिका का जश्न मनाते हैं। इसी मौके पर चायपानी हिंदी ने सोचा कि क्यों न मौजूदा समय में पत्रकार, मीडिया, और पत्रकारिता की भूमिका के बारे में किसी विशेषज्ञ से बात की जाए। और इसी कड़ी में हम जाने-माने मीडिया विश्लेषक, विनीत कुमार जी से रूबरू हुए। उनके साथ हुए इस साक्षात्कार का सार हम अपने पाठकों के लिए यहाँ पेश कर रहे हैं।

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चायपानीमौजूदा समय में ऐसा कहा जा रहा है कि मीडिया और आज के समय की पत्रकारिता, सरकार के अधीन कार्यशील है, इसपर क्या कहेंगे?
विनीत कुमार – मैं जल्दबाज़ी में किसी निर्णय पर पहुंचने का आदी नहीं हूँ और इस सवाल से पूरी तरह सहमत भी नहीं हूँ। अगर मैं बात उस समय की करूँ जब देश में दूरदर्शन और आकाशवाणी की शुरुआत हुई थी, उस समय भी सरकार का दबदबा या नियंत्रण, सूचना के माध्यमों पर रहा है। आप यह समझ लें कि दिक्कत इस बात में बिलकुल नहीं कि हमारे आज के दौर का मीडिया, सरकार के अधीन रहते हुए कार्य कर रहा है। लेकिन यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि क्या सरकार के अधीन रहते हुए भी, कोई मीडिया हाउस, जनतांत्रिक, संवैधानिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दे पाने में सक्षम हो पा रहा है? इसका जवाब आत्मचिंतन से निकलकर आएगा।

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Picture Courtesy: Estonian World

आप अगर प्रसार भारती के 10 उद्देश्यों को देखिये तो कोई भी ऐसा उद्देश्य आपको नहीं मिलेगा जो संवैधानिक और जनतांत्रिक मूल्यों के विरोध में जाता हो। दिक्कत यह है कि सरकार और आज के दौर की पत्रकारिता, जनतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करती हुई नहीं दिख रही। ऐसा बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता की पूर्व की सरकारों ने इन मूल्यों को बढ़ावा नहीं दिया है, या सरकारें ऐसा कर नहीं सकतीं। पूर्व में शिक्षा और सूचना का प्रसार, इन्ही माध्यमों के जरिये हुआ, वो भी सरकार के एक्टिव सपोर्ट से।

मैं फिरसे यह बात दोहराना चाहता हूँ कि हमारा मीडिया, अगर सरकार के अधीन है भी तो सरकारों को चाहिए को वो उनका उपयोग, जनतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए करें। हमे यह सवाल (उक्त सवाल) उस सन्दर्भ में पूछना चाहिए कि किसी विशेष सरकार के कार्यकाल में हमारी पत्रकारिता का हाल कैसा रहा, न कि यह कि हर सरकार के कार्यकाल में पत्रकारिता का हाल एक सामान रहा है या आने वाले समय में रहेगा।

चायपानी मीडिया में विपक्ष की कमी पर आपकी राय क्या है?
विनीत कुमार – आज के दौर की पत्रकारिता को केवल सरकार के पक्ष में ही नहीं, बल्कि एक विपक्ष के तौर पर भी कार्य करना चाहिए। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के सामने किसी पत्रकार का खड़ा होना, कई मायनों में मीडिया में विपक्ष की जरुरत को दर्शाता है। सरकार अपने पक्ष में माहौल बनाने की पूरी कोशिश करती रहती है, अच्छे पत्रकार, उनकी पत्रकारिता और मीडिया संस्थानों का यह कर्तव्य है की वो इस माहौल को ‘ब्रेक-थ्रू’ करने का प्रयास करें।

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Picture Courtesy: Newsday

देखिये, आज के दौर में जब एक पत्रकार डर के बावजूद बोलने की कोशिश करता है (मीडिया में विपक्ष के रूप में) तो उसका डर सामूहिक होता है, जो स्वयं के डर से व्यापक एक डर है। यह हमारे जनतंत्र के लिए खतरे की बात है कि एक पत्रकार का डर अब सामूहिक (समाज या समुदय से जुड़ा) डर बनता जा रहा है। स्वयं का डर तो खत्म किया जा सकता है, लेकिन जिस प्रकार से समाज के लिए सम्पूर्ण रूप से डर का निर्माण हो रहा है, वो हमारी पत्रकारिता के लिए खतरे की बात है।

चायपानी पत्रकारिता दिवस पर यह जानना जरुरी है कि फेक न्यूज़ से हमारी पत्रकारिता को किस प्रकार से नुकसान झेलना पड़ रहा है? आप क्या कहेंगे इसपर?
विनीत कुमार – फेक न्यूज़ अपने आप में एक धंधा है, जिसे पीआर एजेंसी चलाती हैं। इन फ़र्ज़ी ख़बरों को राजनीतिक दल के आईटी सेल से भी पूर्ण सहयोग मिलता है और तमाम ख़बरें इन्ही के वॉर रूम से निकलती हैं। इन फ़र्ज़ी ख़बरों से हमारी पत्रकारिता को इसलिए भी खतरा है क्यूंकि यह ख़बरें मुख्य मुद्दों से हमारा ध्यान भटकाते हुए ऐसी तस्वीरें पेश करती हैं, जो सच नहीं हैं।

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Picture Courtesy: The Quint

अच्छी पत्रकारिता, इन फर्जी ख़बरों के आगे गुम होती जाती है। फ़र्ज़ी ख़बरें इसलिए भी तेज़ी से बढ़ रही हैं क्यूंकि इन ख़बरों का निर्माण शून्य लागत पर होता है, इसमें कोई खर्चा नहीं। वहीँ अगर किसी मामले को सच्चाई से रिपोर्ट करना हो तो उसमे संसाधन लगते हैं, जिसे लगाने में कितने पत्रकार या मीडिया हाउस इच्छुक हैं यह सोचने का विषय है।

आज पत्रकारिता दिवस के मौके पर यह समझ लेना भी जरुरी है कि ऐसा नहीं कि फ़र्ज़ी ख़बरें केवल मौजूदा समय की उपज हैं। यह हमेशा से अस्तित्व में रही हैं। जब वर्ष 2003-2004 के समय आप ‘महामानव’, ‘दूध पीते देवता’ इत्यादि के बारे में पढ़ते सुनते थे, और अक्सर इन ख़बरों को हंसकर नकार देते थे, तब भी फ़र्ज़ी ख़बरें अस्तित्व में थी। हाँ यह जरूर है कि उक्त समय इसको पोलिटिकल टच नहीं हासिल हुआ था और यह ख़बरें हमसे सीधे तौर पर जुड़ी नहीं होती थी। अच्छी पत्रकारिता की जितनी जरुरत तब थी, उतनी ही आज भी है, और शायद ज्यादा ही है।

चायपानी मौजूदा समय में पत्रकारिता में सकारात्मकता पर क्या कहेंगे?
विनीत कुमार – देखिये सकारात्मकता अवश्य मौजूद है। अब अगर कोई भी बड़े-बड़े दावे करता है (जो दावे झूठे होते हैं) तो उन दावों को हमारे मौजूदा समय के जिम्मेदार पत्रकार, पंक्चर करने में वक़्त नहीं लगाते। उदाहरण के तौर पर, अगर आप शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार या स्वच्छता पर केवल अच्छे-अच्छे आंकड़े पेश करेंगे तो कोई जिम्मेदार पत्रकार आकर उन आंकड़ों को पंक्चर करदेगा और बता देगा कि किस प्रकार से यह आंकड़े सही तस्वीर पेश नहीं करते हैं। लेकिन हाँ, यह जरूर है कि इस परस्पर लड़ाई में जीत उसी की होगी जिसके पास संसाधन ज्यादा हैं और चूँकि आज के समय में मीडिया हाउसेस कहीं न कहीं बैलेंस शीट ओरिएंटेड होते जा रहे हैं, ऐसे में वो उसी का साथ देना उपयुक्त समझेंगे जो उनकी बैलेंस शीट को मजबूत बनाने में सहायक हों।

चायपानी #मीटू मुहीम को किस प्रकार से देखते हैं? इस मुद्दे को उठाने वाली पत्रकारिता पर क्या कहेंगे?
विनीत कुमार – मैं इस पूरी मुहीम को महिला सशक्तिकरण के रूप में देखता हूँ और अगर हमारे समय की पत्रकारिता इस पूरे मुद्दे को तवज़्ज़ो दे रही है तो यह काबिले तारीफ है। संभव है कि कोई इसका गलत ढंग से शिकार हो जाए, लेकिन यह पूरी मुहीम का उद्देश्य अच्छा है और हमारे समय के लिए जरुरी भी। हमे यह समझना होगा कि इस मुहिम के अंतर्गत पूछे और उठाये जाने वाले सवाल बेहद जरुरी हैं।

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Picture Courtesy: Dailyhunt

चायपानी मौजूदा समय की पत्रकारिता में क्या दिक्कतें निहित मालूम पड़ रही हैं? और चीज़ें बेहतर कैसे हो सकेंगी।
विनीत कुमार – आज के समय के मीडिया हाउसेस, दावा तो देश की आवाज़ बनने का करते हैं, लेकिन वो काम देश के लोगों के लिए नहीं कर रहे हैं। देश और समाज की सेहत के बारे में बात न करते हुए वह केवल अपने बैलेंस शीट की सेहत के बारे में बात करते हैं। हमारे पत्रकारों को चाहिए की वो स्वयं की स्थिति के बारे में सोचे कि आखिर वो कर क्या रहे हैं? पत्रकारों को वो सवाल उठाने चाहिए जिससे लोकतंत्र मजबूत हो सके। उन्हें त्वरित लाभप्रदता के बारे में न सोचते हुए पत्रकारिता की नैतिक जिम्मेदारी को समझना होगा।

मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार, प्रसिद्द पुस्तक, ‘‘मंडी में मीडिया‘ के लेखक हैं और लगातार देश विदेश में मीडिया की भूमिका पर चर्चा करते रहते हैं। चायपानी की ओर से इस इंटरव्यू को हमारे साथी स्पर्श उपाध्याय ने संचालित किया।

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Sparsh Upadhyay

एक विचाराधीन कैदी हूँ। कानून की पढ़ाई भी की है। जितना पढ़ता हूँ, कोशिश रहती है कि उतना ही लिखूं भी। सच्चाई, ईमानदारी और प्रेम को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत समझता हूँ।

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