जब मैरी क्यूरी ने वर्ष 1903 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार (भौतिकी में) जीता था, तो महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था, वे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से स्नातक नहीं हो सकती थी और उन्हें समाज में फेलो बनने की इजाजत नहीं थी। जब मारिया गोएपर्ट-मेयर ने वर्ष 1963 में नोबेल सम्मान जीता (भौतिकी में), तो उन्हें अपने वैज्ञानिक शोध के लिए भुगतान नहीं किया जा रहा था, और स्थानीय अख़बार में शीर्षक ने उनकी सफलता की घोषणा करते हुए लिखा था, “मदर विन्स नोबेल पुरस्कार”।
अगर यह कहा जाए की हमारा मौजूदा समाज, बराबरी की सकारात्मक लड़ाई का इतिहास बयान करता है तो कुछ गलत नहीं होगा। लिंग, जाती, धर्म, विचारधारा और न जाने कितने अन्य वर्गीकरण, हमारे समाज में मौजूद हैं और यह बरसों से अपने हक़ के लिए एक सकारात्मक लड़ाई में शमिल रहे हैं। यह लड़ाई भले ही सकारात्मक रही हो पर उसके परिणाम, नकारात्मक भी रहे हैं।
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वास्तव में मानव के मध्य असमानता की मौजूदगी, प्रकृति की खूबसूरती का जीता जागता प्रतीक है। जब मैं ‘असमानता’ कहता हूँ तो मैं उसे भिन्नता (या विशिष्टता/uniqueness) के रूप में समझता हूँ, जिस प्रकार एक पुरुष के परिपेक्ष्य से एक महिला भिन्न है, ठीक उसी प्रकार एक महिला के परिपेक्ष्य से पुरुष उससे भिन्न है। और इसी तर्क से हम सब एक दूसरे से किसी न किसी आधार पर भिन्न हैं। आगे यह कहने कि जरुरत नहीं कि सबको सबकी भिन्नता या विशिष्टता का सम्मान करना अनिवार्य है। न केवल यह समाज का, राष्ट्र का बल्कि प्रकृति का, नियम है।
लेकिन मनुष्यों में दमन का स्वाभाव इस असमानता के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में उभर कर आया है। हालाँकि इस लेख को हम फ़िलहाल लिंग की समानता के सन्दर्भ में पढ़ेंगे, परन्तु सामान परिस्थितियां लगभग हर प्रकार की असमानताओं के साथ रही हैं, मसलन लिंग, जाती, धर्म, विचारधारा एवं अन्य।
स्त्री, महिला या औरत (जिसमे आपकी माँ, पत्नी, बेटी या बहन भी शामिल हैं), आप जो भी कह लें, वे हमेशा से पुरुषों के दिखाए रास्ते पर चलती नजर आती हैं और इतिहास में जिस दौर से उन्होंने अपने रास्ते स्वयं तय करने शुरू किये, वहां से उनकी सफलता के किस्से और रोचक नजर आते हैं।
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खैर समाज में आज भी महिलाओं को उनके हक़, सम्मान और उचित स्थिति के लिए लड़ाई लड़नी पड़ती है और ऐसे समय में जब भारत या विश्व में कहीं भी महिलाओं को उनके काम के लिए पहचान मिलती है, तो गर्व होता है। गर्व इस बात का कि न केवल हमारे समाज में महिलाओं को उनका उचित स्थान और नाम प्राप्त हो रहा है बल्कि समाज में असमानता (या विशिष्टता/uniqueness) का जश्न मनाया जा रहा है।
हाल ही में महिलाओं ने अपने काम के कारण विश्व भर में कुछ विशिष्ट सम्मान अपने नाम किये हैं, हम इस लेख में उन्ही सम्मानों की चर्चा करेंगे और उसे पाने वाली 5 महिलाओं से आपका परिचय करवाएंगे।
डोना स्ट्रिकलैंड (कनाडा) – भौतिकी में नोबेल
पिछले 55 वर्षों में भौतिकी में नोबेल जीतने वाली पहली और अबतक की तीसरी महिला हैं (मैडम क्यूरी और मारिया गोएपर्ट-मेयर, क्रमशः पहली और दूसरी महिला हैं)। 27 मई 1959, को गुएल्फ, कनाडा में जन्मी डोना ने मैकमास्टर और रोचेस्टर यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। उन्होंने इस पुरस्कार को लेसर फिजिक्स में किये गए अपने शोध के लिए, आर्थर अश्किन एवं जेरार्ड मौरौ के साथ साझा किया। यूनेस्को के महानिदेशक ऑड्रे अज़ौले ने उनके लिए कहा,
“विशेष रूप से, डोना स्ट्रिकलैंड की मान्यता विज्ञान में सभी महिलाओं के लिए एक उत्साहजनक संकेत होना चाहिए और और यह खासकर उस विविधिता के लिए अच्छा समाचार है जो नवाचार को बढ़ावा देती है।“
वो कनाडा के ओंटारियो स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉटरलू में केवल एक एसोसिएट प्रोफेसर हैं, लेकिन उनका तुलनात्मक रूप से छोटा पद, उनकी प्रतिभा को पहचान दिलाने से नहीं रोक सका।
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फ्रांसिस एच. अर्नाल्ड (अमेरिका) – रसायन में नोबल
रसायन में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली फ्रांसिस, इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के इतिहास में पांचवी ऐसी महिला बनी जिन्हे रसायन में नोबेल प्राप्त हुआ है। क्रमविकास के सिद्धांतों का उपयोग कर जैव ईंधन से ले कर औषधि तक, हर चीज बनाने में इस्तेमाल होने वाले एंजाइम का विकास करने के चलते फ्रांसिस ने इस पुरस्कार को जार्ज स्मिथ और ब्रिटिश अनुसंधानकर्ता ग्रेगरी विंटर के साथ साझा किया।
25 जुलाई, 1956 में जन्मी फ्रांसिस, अपनी युवावस्था में एक वेट्रेस रह चुकी हैं और कैब ड्राइवर की नौकरी कर चुकी हैं। फ्रांसिस आज देश विदेश की महिलाओं के लिए के मिसाल के तौर पर उभरी हैं। प्रिंसटोन एवं कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी से पढ़ चुकी फ्रांसिस के नाम पर तकरीबन 40 अमेरिकी पेटेंटेड उत्पाद हैं। वह कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कैल्टेक) में केमिकल इंजीनियरिंग, बायोइंजिनियरिंग और बायोकैमिस्ट्री की लिनस पॉलिंग प्रोफेसर हैं।
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नादिआ मुराद (जर्मनी आधारित याज़ीदी-इराकी मानवाधिकार कार्यकर्ता) – शांति का नोबेल
वर्ष 1993 में जन्मी और शांति का नोबेल जीतने वाली नादिआ के साथ एक दर्दनाक इतिहास जुड़ा रहा है। उन्हें 15 सितंबर 2014 को आईएस नमक आतंकवादी संगठन द्वारा बंधक बना लिया गया था। उनसे मोसुल शहर में एक सेक्स स्लेव के रूप में काम करवाया जाता था, उन्हें पीटा जाता था, सिगरेट से जलाया जाता था, और भागने की कोशिश करते समय उनके साथ बलात्कार भी किया गया। नादिया अपने कैदखाने को एक दिन खुला पाने पर वहां से भाग निकली और इसके बाद उन्होंने यौन हिंसा के प्रति जागरुकता फ़ैलाने का कार्य शुरू किया।
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मुराद और कांगो के चिकित्सक डेनिस मुकवेगे को यौन हिंसा को युद्ध हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर रोक लगाने के इनके प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार 2018 के लिए संयुक्त रूप से चुना गया है।
वे मानव कार्यकर्ता होने के साथ साथ डिग्निटी ऑफ़ सरवाईवर्स ऑफ़ ह्यूमन ट्रैफिकिंग ऑफ़ दी यूनाइटेड नेशंस (यूएनओडीसी) के लिए पहली गुडविल राजदूत भी हैं। वे यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी कौंसिल और यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम को सम्बोधित करने के साथ साथ अपने संस्मरण को किताब के रूप में लिख चुकी हैं, द लास्ट गर्ल: कैप्टीविटी की माई स्टोरी, और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ माई फाइट।
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बिनलक्ष्मी नेपराम (मणिपुर, भारत) – रीच आल वीमेन इन वॉर (रॉ इन वॉर) एना पॉलिट्कोवस्काया अवार्ड
ऑक्सफैम के लिए काम कर चुकी बिनलक्ष्मी, 2004 में स्थापित कंट्रोल आर्म्स फाउंडेशन ऑफ इंडिया (सीएएफआई) की सह-संस्थापक भी रह चुकी हैं, जो एक नागरिक समाज संगठन है जो निरस्त्रीकरण पर काम कर रहा है और सैन्यीकरण का विरोध कर रहा है। वे मणिपुर वीमेन गन सरवाईवर्स नेटवर्क की संस्थापक थी, जिसके अंतर्गत उन्होंने 20,000 से अधिक, उन महिलाओं को सहायता प्रदान की, जो दशकों के सशस्त्र संघर्ष और जातीय हिंसा को झेल चुकी हैं।
वह दक्षिणी मणिपुर के एक गांव में एक 27 वर्षीय व्यक्ति की हत्या की साक्षी भी रही और बाद में बिनलक्ष्मी ने उस युवक की युवा पत्नी रेबिका अखम को जीवित रहने के लिए एक सिलाई मशीन खरीदने में मदद की थी। मौजूदा समय में वे देश से बार वास कर रही हैं। नेप्राम को बेलारूसी पत्रकार और नोबेल साहित्य विजेता, स्वेतलाना एलेक्सिएविच के साथ यह पुरस्कार संयुक्त रूप से प्राप्त हुआ। उन्हें यह पुरस्कार देते हुए उनकी अन्याय, हिंसा और अतिवाद के खिलाफ बोलने में दिखाई गयी बहादुरी को सराहा गया।
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स्वेतलाना एलेक्सिएविच (बेलारूस) – रीच आल वीमेन इन वॉर (रॉ इन वॉर) एना पॉलिट्कोवस्काया अवार्ड
31 May 1948 को जन्मी स्वेतलाना एलेक्सिएविच, नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित की जा चुकी हैं। उन्हें वर्ष 2015 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार “उनके पॉलीफोनिक लेखन के लिए, जोकि मौजूदा समय में पीड़ा और साहस के लिए एक स्मारक है”, के लिए प्रदान किया गया। वे जांच पत्रकार, निबंधक और मौखिक इतिहासकार हैं। वे कई वर्षों से अन्याय के बारे में बहादुरी से बात कर रही हैं और संघर्ष में फंस गए लोगों को आवाज दे रही हैं।
उन्होंने बार-बार क्रीमिया के रूसी सम्बन्ध और पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष में मानवाधिकार उल्लंघन के साथ-साथ बढ़ते राष्ट्रवाद और यूक्रेन में कुलीन वर्ग की आलोचना की है, जिसने रूसी और यूक्रेनी राष्ट्रवादियों दोनों के खिलाफ खतरे लाए हैं। स्वेतलाना ने यह पुरस्कार भारत की बिनलक्ष्मी के साथ साझा किया। उन्हें यह पुरस्कार देते हुए उनकी अन्याय, हिंसा और अतिवाद के खिलाफ बोलने में दिखाई गयी बहादुरी को सराहा गया।
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