शिक्षा का असल लक्ष्य, ज्ञान की प्रगति और सत्य का प्रचार है। – जॉन एफ कैनेडी
जॉन ऍफ़ कैनेडी की यह बात शत प्रतिशत सत्य है। शिक्षा, न केवल एक व्यक्ति के जीवन की पूँजी होती है बल्कि वह व्यक्ति सत्य के ज्ञान को कितनी गहराई से प्राप्त करने में सक्षम रहा है, इस बात की परिचायक भी। भारत में शिक्षा के हाल पर चर्चा कोई नई बात नहीं। साक्षरता दर और बेरोजगारी दर पर चर्चा लगभग हर रोज हमारे अख़बारों की सुर्खियाँ बनती हैं। लेकिन इन सबके बीच, हमारे गाँव में और हमारे देश के पिछड़े इलाकों में हमारे बच्चे, शिक्षा से काफी दूर खड़े नजर आते हैं। भले ही कोई भी सरकार सत्ता में क्यों न हो, शिक्षित समाज सभी सरकाओं के लिए एक प्राथमिकता रही है। इसके लिए कानून से लेकर एनजीओ और सरकारी स्कीमों से लेकर जागरूकता तक, तमाम प्रकार के उपाय, उपयोग में लिए जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद, हर तबके तक शिक्षा की पहुंच होना मुमकिन नहीं हो पाता। ऐसे समय में चंद ऐसी मुहीम, समाज के लिए रौशनी बनकर हमारे सामने आती हैं जिनके चलते समाज में बदलाव आने की उम्मीद बढ़ जाती है। आई सक्षम (I-Saksham) ऐसी ही एक मुहीम का नाम है। आइये हम इस मुहीम के बारे में विस्तार से समझते हैं।
आई-सक्षम: शिक्षा के क्षेत्र में है एक नई पहल
आई-सक्षम मुहीम का मुख्य सिद्धांत सीखें-और-सिखाएँ है, जिसके अंतर्गत शिक्षा के प्रति जागरूक गाँव के युवाओं को ही एक अच्छे शिक्षक बनने के लिये प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि वे स्वयं सीखें और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दें। आई-सक्षम, देश के दूरस्थ और संघर्षग्रस्त इलाकों (बिहार के जमुई और मुंगेर जिले) में एक गैर-लाभकारी संगठन के तौर पर कार्यशील है, जहां स्थानीय युवाओं का चयन किया जाता है (जो पहले से बच्चों को पढ़ाते हैं या पढ़ाने के इच्छुक हैं) और इसके बाद उन्हें पाठ्यचर्या, डिजिटल प्रौद्योगिकीऔर गुणवत्ता संबंधी शिक्षा प्रदान करने के लिए अन्य प्रासंगिक तरीकों को इस्तेमाल करने के लिये तकनीक के उपयोग में भी प्रशिक्षित किया जाता है।
आई-सक्षम की सह-स्थापना करने वाले और सीएफओ, आदित्य त्यागी, चायपानी हिंदी को दिए एक विशेष साक्षात्कार में बताते हैं,
हम गाँव-गाँव जाकर ऐसे लोगों को चुनते हैं जो पढ़ा रहे हों या पढ़ाने की इच्छा रखते हों। पहले चरण में हम इन्हे तीन महीनो के लिए इनके गाँव में ही जाकर प्रशिक्षण देते हैं। प्रशिक्षण में सफल होने पर इन्हें राष्ट्रीय कौशल विकास निगम, जिसके हम इनोवेशन पार्टनर हैं का प्रमाण पत्र दिया जाता है। ये युवा इस प्रशिक्षण के बाद अपना स्वयं का शिक्षा केंद्र बेहतर ढंग से संचालित कर सकते हैं। दूसरे चरण में, इन 3 महीनों के बाद, जिन लोगों में हमे अधिक संभावनाएं दिखती हैं हम उन्हें आई-सक्षम फ़ेलोशिप देते हैं। हमारा उद्देश्य ये है कि शोर्ट टर्म में बच्चों के लिए गाँव में ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं युवाओं को लिए गाँव में रोजगार के अवसर मिलें और लॉन्ग टर्म में ये युवा, शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बनकर आयें और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का विस्तार करें।
आई-सक्षम, पिछड़े इलाकों में शिक्षकों की कमी को भी पूरा करने का काम कर रहा है, जो अक्सर बच्चों की बेहतर शिक्षा के रास्ते में एक मुख्य समस्या रही है।
इस प्रशिक्षण के जरिये दूरस्थ गाँव में हो रहा है बच्चों का कल्याण
जहाँ यह सभी प्रशिक्षु, अपने प्रयासों में संगठन से स्वतंत्र प्रशिक्षण और समर्थन प्राप्त करते हैं, वहीँ दूरस्थ गाँव में बच्चों के पाठ और कक्षाओं की जिम्मेदारी इन प्रशिक्षुओं पर ही होती है। वे आम तौर पर प्रति माह प्रति छात्र 50-70 रुपये का शुल्क लेते हैं और बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा प्रदान करते हैं। आई-सक्षम युवाओं (जिनमें मुख्य रूप से लड़कियां मौजूद हैं) को इस प्रकार से प्रशिक्षित करता है, कि ये सभी प्रशिक्षु बदले में स्वयं से शिक्षण केंद्र चलाते हैं जहां वे सामुदायिक बच्चों के भविष्य को उज्जवल करने में सक्षम होते हैं।
फ़ेलोशिप के अन्तर्गत आई-सक्षम, प्रशिक्षुओं के शिक्षा केंद्र को विभिन्न सहायता (पुस्तकालय, विशेष शिक्षण सामग्री, शिक्षण उपयोगी विडियो व् एपस से युक्त, कम लागत वाली एंड्रॉइड टैबलेट इत्यादि) देने के साथ साथ इन फेलोज़ की सतत मेंटरशिप व् उनके द्वारा पढाये गए बच्चों की प्रगति पर भी (अपनी टीम के जरिये) नजर रखता है। पढ़ाने के तरीकों में इनको पारंगत बनाने के साथ उनके व्यक्तित्व विकास पर भी कार्य किया जाता है।
कुछ फेलोज को आई-सक्षम निकटवर्ती स्कूल में पढ़ाने का काम देता हैं, और इसके लिए उन्हें स्टाईपेंड भी दिया जाता है। ये फेलोज ऐसे विद्यालयों में पढ़ाते हैं जहाँ शिक्षकों की कमी के कारण शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। सभी फेलोज को बच्चों के अभिभावक को भी साथ में लाना होता है ताकि वो बच्चे के सर्वांगीण विकास में बेहतर भूमिका निभा सकें। यह सबकुछ आई-सक्षम टीम के मार्गदर्शन में होता है जिसके चलते अंतिम बच्चे तक इस पूरी मुहिम का असर काफी प्रभावी ढंग से पड़ता है।
युवाओं को उनकी प्रतिभा और रूचि के अनुसार कैरियर बनाने के अवसर देता है आई-सक्षम
आई-सक्षम, इन्हें ऐसे अवसर देता है जिनके द्वारा ये युवा न केवल बच्चों को शिक्षा देते हैं बल्कि स्वयं की आय से इनको अपनी शिक्षा को आगे बढाने में भी मदद मिलती है और उन्हें अपने व्यक्तित्व विकास में भी मार्गदर्शन मिलता है। फेलोज को उनकी रूचि के अनुसार करियर गाइडेंस के साथ कोचिंग व् वित्तीय मदद भी दी जाती है। आई-सक्षम के लिए फ़ेलोशिप कर रहे कुछ छात्र/छात्राएं (प्रशिक्षु) देश के बड़े संस्थानों में पढ़ाई करने का अवसर भी प्राप्त करते हैं।
फलस्वरूप कुछ युवा देश के जाने-माने संस्थानों जैसे अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान आदि में पढ़ रहे हैं। यहाँ यह बताना जरुरी है कि यह सब कुछ आई-सक्षम के कारण संभव हो पाता है। और इन सबके बीच, आई-सक्षम का मुख्य मकसद, पिछड़े इलाकों में मौजूद बच्चों/युवा का कल्याण, सफलता प्राप्त करना रहता है।
विकास का रास्ता शिक्षा से होकर जाता है
आदित्य स्वयं कहते हैं,
आई-सक्षम न केवल इच्छुक लोगों को पढ़ाने के गुर सीखा रहा है बल्कि उनकों सक्षम भी बना रहा कि वो शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ें और समाज में नेतृत्व की क्षमता के साथ उभरें। इसके जरिये वो या तो स्वयं बेहतर शिक्षा प्राप्त करते हुए वापस आकर बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सकेंगे, सरकारी/गैर सरकारी शिक्षा संस्थानों में काम करेंगे या वो सरकारी और प्राइवेट विद्यालयों में आदर्श शिक्षक बनकर बेहतर ढंग से शिक्षा दे पाएंगे, और इसके अलावा वो हर हाल में भविष्य में स्वयं बेहतर माता या पिता बनेंगे जो अपने बच्चों को बेहतर ढंग से शिक्षित करने की अहमियत समझेंगे।
आदित्य बताते हैं कि आई-सक्षम अबतक 1000 लोगों को अपने कार्यक्रम के अंतर्गत प्रशिक्षित कर चुका है। यह पूछने पर कि क्या आई-सक्षम, एक समान्तर शिक्षा प्रणाली पर कार्य कर रहा है, आदित्य बताते हैं,
हम किसी समानांतर शिक्षा प्रणाली के निर्माण पर कार्य नहीं कर रहे हैं, बल्क हम समाज में बेहतर शिक्षक की कमी को पूरा कर रहे हैं। हम एक पूरक शिक्षा व्यवस्था का सञ्चालन कर रहे हैं जिसके जरिये उन कमियों को पूरा करने का काम किया जाता है जो हमारी परंपरागत शिक्षा प्रणाली में निहित होती हैं।
आई-सक्षम बच्चों के पढ़ाई के स्तर को समझते हुए उन्हें एक ग्रुप में डालता है, जिसे ‘मल्टीग्रेड प्रणाली’ का नाम दिया गया है। और फिर तमाम अनूठे तरीकों से उनके मानसिक स्तर को समझते हुए उन्हें बेहतर शिक्षा दी जाती है। आई-सक्षम का मिशन है कि वो गाँव के युवाओं को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में इतना शशक्त कर दें कि एकसमान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, गरीब बच्चों को मिल पाये जिसके लिये शहर में लोग लाखों रूपये खर्च करते हैं।
मिल रहा है हर तरफ से समर्थन
प्रारंभ से लेकर अब तक आई-सक्षम को क्राउड-फंडिंग से काफी मदद मिली है। अनेको लोगों ने इस मुहीम में अपना योगदान दिया है। आई-सक्षम नेशनल स्किल डेवलपमेन्ट कारपोरेशन के इनोवेशन सहयोगी के तौर पर काम कर रहा हैं। आदित्य बताते हैं,
हमे आईआईएम-बंगलौर इन्क्यूबेट कर रहा है और हम पिछले वर्ष जनहित जागरण 2017-18 कार्यक्रम (दैनिक जागरण की एक पहल) के विजेता भी रहे हैं।
हमे उम्मीद है कि ऐसी और पहलों के जरिये समाज में एक बेहतर परिवर्तन लाया जा सकेगा और लाया जा भी रहा है। आई-सक्षम को हमारी ओर से ढेरों शुभकामनायें दी जाती हैं और हम उम्मीद करते हैं कि वो आने वाले समय में शिक्षा के क्षेत्र में और ज्यादा सुधार करने की ओर अग्रसर रहेंगे।
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